महाकाव्य रामायण में, अंगद कौन थे? इस महान महाकाव्य में उनकी क्या भूमिका थी? जानिए
अंगद महाबली , पराक्रमी और वानरों के युवराज थे। अंगद के पिता बाली किष्किंधा के महाराज थे। श्रीराम द्वारा बाली का वध करने के पश्चात बाली ने अंगद को श्रीराम की सेवा में समर्पित कर दिया था।
अंगद की भूमिका- अंगद , हनुमान जी, नल नील और जामवंत जैसे वीर योद्धाओं को सुग्रीव ने सीता की खोज करने के लिए दक्षिण दिशा में भेजा था। सामने विशाल समुद्र को देखकर सभी वानर सेना उसे पार करने का विचार कर रही थी तब अंगद ने उठकर कहा-
अंगद कहहिं जाऊं मैं पारा, जियं फिरती कछु संशय बारा।
जामवंत कह तुम सब लायक, पठिहिं किमी सबहीं कर नायक।
अर्थात- अंगद ने कहा मैं समुद्र को एक छलांग लगा कर पार कर सकता हूं लेकिन वापस आने में कुछ संशय है। जामवंत ने कहा तुम यह काम करने लायक हो लेकिन तुम हमारे नायक हो इसलिए तुम्हें नहीं भेज सकते।
सबसे बड़ी पहचान अंगद को तब मिली जब श्रीराम ने उन्हें अपना दूत बनाकर रावण को समझाने के लिए भेजा।
बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा
श्री रामजी ने अंगद से कहा- हे बल, बुद्धि और गुणों के धाम बालिपुत्र! हे तात! तुम मेरे काम के लिए लंका जाओ॥
बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ॥
काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई।।
भावार्थ:- तुमको बहुत समझाकर क्या कहूँ! मैं जानता हूँ, तुम परम चतुर हो। शत्रु से वही बातचीत करना, जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण हो
इस तरह हम समझ सकते हैं कि अंगद वीर और बुद्धिमान थे जिन्हें श्रीराम ने अपना दूत बनाकर भेजा।
अंगद के लंका में प्रवेश करते ही राक्षसों में भगदड़ मचा जाता है। रावण का एक पुत्र अंगद से भिड़ जाता है वहीं अंगद उसका वध कर देते हैं। अंगद के इस वीरता की वजह से सभी राक्षस इधर उधर भागने लगते हैं।
अब धौं कहा करिहि करतारा। अति सभीत सब करहिं बिचारा॥
बिनु पूछें मगु देहिं दिखाई। जेहि बिलोक सोइ जाइ सुखाई।।
भावार्थ:- सब अत्यंत भयभीत होकर विचार करने लगे कि विधाता अब न जाने क्या करेगा। वे बिना पूछे ही अंगद को (रावण के दरबार की) राह बता देते हैं। जिसे ही वे देखते हैं, वही डर के मारे सूख जाता है॥
ऐसे महापराक्रमी अंगद रावण को ज्ञानयुक्त बातें समझाते हैं लेकिन रावण के सर पर काल मंडरा रहा था इसलिए उसने अंगद की बात नहीं मानी। रावण से युद्ध के दौरान भी अंगद ने वीरता दिखाते हुए कयी राक्षसों को यमलोक पहुंचा दिया था।