महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु को क्या श्राप दिया था? जानिए
महर्षि भृगु ब्रह्म देव भगवान के पुत्र थे. उनकी पत्नी ख्याति थी. ख्याति को संजीवनी विद्या का कुछ ज्ञानअपने पुत्र शुक्र से मिला था. वह अपने पुत्र कि इस विद्या का उपयोग दैत्यों को मज़बूत करने मे करती थी. शुक्राचार्य ख्याति और भृगु जी के पुत्र थे जो कि स्वयं दैत्य गुरु थे और हरिण्यकश्यप दैत्यराज को अति प्रिय थे. दैत्यराज ने उनके ज्ञान से ही प्रभावित होकर उनको दैत्य गुरु बनाया था. विश्वकर्मा या मय दानव भी इन्ही भृगु जी के पुत्र थे जो कि दैत्य शिल्पी थे और सबसे योग्य स्थापत्य कलाकार थे.
शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या भगवान शिव से कठिन तप परिश्रम से सीखी थी. उनको ज्ञान था कि किसी मृत योद्धा को संजीवनी के प्रयोग से कैसे पुनर्जीवित किया जाय. उनकी इस ज्ञान कि वजह से ही दैत्य देव संग्राम मे देव कमजोर पड़ते थे और लगातार हार हार रहे थे. इनके गुरु बृहस्पति देव थे और उनके पास शुक्राचार्य कि संजीवनी विद्या का कोई कारगर उपाय नहि था तथा देवताओं कि सहायता नहि कर पा रहे थे. विष्णु आदित्य है अदिति पुत्र है अतः दिति पुत्र दैत्यों से आपसी कुछ कलह बनी रहती थी. दिति अदिति दोनो बहने थी. दिति से दैत्य अदिति से आदित्य पुत्र हुए.
देवता हारते देख उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी. तब भगवान विष्णु ने देवताओं कि प्रार्थना को ध्यान रखकर ख्याति जो कि भृगु जी कि पत्नी थी का वध कर दिया सिर कट दिया. इससे भरगु ऋषि बहुत दुखी हो गए और शुक्राचार्य भी बहुत क्रोधित हुए क्योंकि उनकी माता का वध विष्णु ने कपट से किया था. भृगु ऋषि ने क्रोधित होकर विष्णु जी को भी श्राप दिया कि ज़िस तरह मे अपनी पत्नी के वियोग मे पीड़ित हु ऐसे ही आपको अगेत्रेता युग मे अपनी पत्नी का वियोग सहना पड़ेगा. अतः श्री हरी त्रेता युग मे श्री राम बने और लक्समी जी सीता बनी तथा दोनो का वियोग हुआ और श्री राम लम्बे समय तक पत्नी से अलग रहे.
श्री भृगु ऋषि विष्णु जी के उनकी पत्नी ख्याति के वध करने के बाढ दुखी होकर बलिया से लेकर फैज़ाबाद के क्षेत्र मे आकर आश्रम बनाकर रहने लगे जो आधुनिक उत्तर प्रदेश मे ही है.