महर्षि दुर्वासा के श्राप का शिकार कितने लोग हुए थे ?

महर्षि दुर्वासा एक ऋषि हैं। जो अत्रि और अनुसुइया की संतान हैं। इनको शिव का अवतार माना जाता है ।

ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के कारण मशहूर थे। इनके क्रोध के डर से सभी लोग इनका आदर सम्मान करते थे। इनके द्वारा दिए गए श्राप सच होते थे ।इन्होंने अपने श्राप से कई लोगों का जीवन खराब कर दिया।

महाकवि कालिदास की महान रचना अभिज्ञान शाकुन्तलतलम में इन्होंने शकुंतला को श्राप दिया था कि इसका प्रेमी इसे भूल जाए और ऐसा सच में हुआ।

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण और देवी रुकमणी शादी के बाद ऋषि दुर्वासा के आश्रम पधारे। उन्होंने दुर्वासा ऋषि को महल आकर भोजन और आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया। जिसे ऋषि ने स्वीकार कर लिया। दुर्वासा ऋषि ने कहा कि आप जिस रथ से आए हैं मैं उससे नहीं जाऊंगा मेरे लिए अलग रथ का इंतजाम किया जाए। लेकिन रथ एक ही था उनकी शर्त मानने के लिए भगवान ने रथ के दोनों घोड़े निकाल दिए और श्री कृष्ण और देवी रुक्मणी रथ में जुत गए। रथ खींचते-खींचते देवी रुक्मणी को प्यास लगी तो उनकी प्यास बुझाने के लिए श्रीकृष्ण ने जमीन पर पैर का अंगूठा मारा जिससे गंगाजल निकलने लगा। इससे उन्होंने अपनी प्यास बुझा ली। जब ऋषि दुर्वासा को यह जल पीने के लिए कहा तो वह क्रोधित हो गए और क्रोध में ऋषि ने भगवान कृष्ण और देवी रुक्मणी को 12 साल अलग रहने का श्राप दे दिया साथ में कहा कि जिस जगह गंगा प्रकट की है वह स्थान बंजर हो जाएगा।

ऋषि के श्राप के कारण द्वारकाधीश के मंदिर में रुक्मणी की कोई भी मूर्ति नहीं है। इसकी वजह राधा नहीं ऋषि दुर्वासा का श्राप है।

उनके क्रोध के कई लोग शिकार हुए एक बार दुर्वासा ऋषि ने हनुमान जी की माता पुंजिकस्थली नामक अप्सरा को भी वानरी हो जाने का श्राप दिया। पुंजिकस्थली के बहुत क्षमा मांगने पर ऋषि ने उन्हें इच्छा अनुसार रूप धारण करने का वर भी दे दिया।

देवराज इंद्र जो तीनों लोकों के अधिपति थे दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण तीनों लोकों सहित श्रीहीन हो गए थे।

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