मराठा या राजपूत : युद्ध में कौन अधिक प्रभावी थे?
युद्ध में सबसे ज्यादा प्रभावी होती है ” रणनीति ” अगर मजबूत और बिना लीकेज वाली रणनीति होती है तो युद्ध आपका, आपको इतिहास में यही मिलेगा।
खैर बात है कि मराठा और राजपूत इनमें से युद्ध में अधिक प्रभावी कौन था ?
ये हम जानते हैं कि दोनों ही योद्धा का जाति रही है। अपने अपने समय में दोनों ने ही विदेशी आक्रांताओं से युद्ध किया ।
यहां एक बात जानना जरूरी है यह समझने के लिए कि हर्ष के बाद उत्तर राजनीतिक ढंग से टूट गया और वहां राजपूतों के छोटे छोटे राज्य पैदा हो गए थे जैसे प्रतिहार , सोलंकी , गुहिल , चौहान आदि ।
राजपूतों ने शुरुआती 400 सालों में काफी अच्छे ढंग से अरब आक्रांताओं का सामना किया और लगभग 1192 ईसवी से लेकर 1600 ईसवी तक का समय इनका उन ताकतों के साथ विरोध का रहा यहां मेवाड़ विरोध का अगुवा रहा और महाराणा प्रताप के साथ ये विरोध भी खत्म हो गया था ।
चित्र स्रोत:A-Rajput-warrior – Merryn Allingham
फिर राजपूताना ने मुगलों से संधि कर ली लेकिन इसकी शर्त थी कि उनके राज्य में दखल अंदाजी नहीं होगी मतलब की राजपूत राज्य अभी भी इंडिपेंडेंट थे लेकिन अब एक्सपेंड नहीं कर सकते थे।
इसके बाद विरोध की ज्वाला दक्षिण में जगी और महाराज शिवाजी के साथ मराठों ने अपना साम्राज्य बनाया और 1707 के बाद मुगल भी उनके संरक्षण में आ गए और उनका शक्ति अफ़ग़ानिस्तान के आज के बॉर्डर तक पहुंच गई ।
तो आप यहां तक चीज देखो की दोनों ताकत मराठा और राजपूत अपने अपने समय पर प्रभावी रहे।
राजपूत और मराठों में युद्ध लड़ने के तरीके में अंतर था । मराठा गोरिल्ला वारफेयर में माहिर थे और राजपूत मैदानी युद्ध में ।
राजपूत योद्धा युद्ध में परिणाम के लिए नहीं लड़ते थे सिर्फ आन के लिए लड़ते थे उनके लिए परिणाम सैकंडरी चीज थी वहीं मराठों के लिए परिणाम प्रथम था एन केन प्रकारेन इसीलिए अंगेजो तो वो दुर्जेय रहे ।
वहीं मराठा राजपूतों की तुलना में अधिक भाईचारे में थे वो साथ लड़ते थे लेकिन राजपूतों में वैसा भाईचारा नहीं था वो विदेशियों से ज्यादा आपस में लड़ते थे इसलिए युद्ध में हमेशा धोखेबाजी का शिकार होते थे ।
राजपूत युद्ध में योद्धा के रूप में मराठों से बेहतर नजर आते हैं क्यों कि गोरिल्ला वारफेयर भी आदिवासियों से राणा ने सीखी और कहीं ना कहीं महाराज शिवाजी उनसे प्रभावित थे ।
लेकिन चतुराई और रणनीति में मराठा योद्धा बेहतर थे अगर हम पानीपत को अपवाद मान ले तो हमें अंदाज़ा हो जाएगा कि वो कितने काबिल सैनिक थी , बल और बुद्धि दोनों से।
वहीं मराठाओं को लगातार अच्छे कमांडर मिले और उनका एक उद्देश्य था साफ ” स्वराज ” ऐसा राजपूत योद्धा के साथ नहीं था वो सिर्फ वफादारी निभाते थे और वचन के लिए जान देते थे । वो अपने सरदार के वफादार होते थे मतलब मैं कह सकता हूं राजपूत ज्यादा आज्ञाकारी और भरोसेमंद योद्धा थे वहीं मराठा चतुर और संगठित योद्धा थे ।