भूत बंगला और कुएं का रहस्य
उमा अपने दादा के बंगले पर जाने वाली थी उसने अपने सारे कपड़े पैक कर लिए थे और उसकी गाड़ी बाहर तैयार खड़ी थी दादा का बंगला उमा के घर से लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर था वह एक आलीशान बंगला था। जिसमें पहले उसके दादा रहा करते थे।
उनकी मां ने बताया था यह बंगला तुम्हारे दादा का है और पहले ही तुम्हारे पापा इसी बंगले में रहा करते थे। जब तुम्हारे पापा की सरकारी जॉब लगी, तो हम लोग यहां पर रहने के लिए आ गए। जब उसकी मां उस बंगले से निकली थी तब वहां पर सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन अब बंगला बहुत वीराना सा हो गया, इसलिए वहां जाने की हिम्मत किसी की नहीं होती है। पर यह सब बात उमा की मां को कुछ भी पता नहीं थी। इसीलिए उमा की मां, उमा को अपनी पुरानी जगह पर भेजने का निर्णय लेती है।
उमा उस जगह पर जब पहुंच जाती है तो वह बंगले को देखती है, उसको बंगला बहुत अच्छा लगता है। उस बंगले के चारों तरफ घूमती है। और फिर अंदर जाती है। वह अंदर जाने के लिए दरवाजा खोलती है दरवाजे में से एक अजीब सी आवाज आती है।चर…. चर….. चर…..
उस बंगले के पीछे एक सूखा कुआं बना हुआ था, उस कुएं में सूखे हुए पेड़ की पत्ती के अलावा और कुछ नहीं पड़ा था।
उमा उस बंगले के अंदर देखती है,कि वहां का सारा सामान अस्त व्यस्त पड़ा हुआ है।और उन पर धूल मिट्टी जमी हुई होती है।उमा, उस पूरे बंगले को साफ करती है। उमा थकी हुई होने की वजह से थोड़ा आराम करने के लिए अपने कमरे में जाती है । उस कमरे की खिड़की से बाहर सुखा हुआ कुआं साफ साफ दिखाई पड़ता है। वह उस कुएं को रोज देखती रहती है, और सोचती है कि आखिर यह कुआं यहां पर क्या कर रहा है, पर डर की वजह से वह उस कुएं के नजदीक नहीं जा पाती है।
खैर! इस तरह से रात हो जाती है और वह सोने चली जाती है। अगली सुबह जब उठती है तो बाहर उसे कोई खड़ा हुआ दिखाई पड़ता है शायद कोई बूढ़ी अम्मा होती है। उमा उस बूढ़ी अम्मा के पास जाती है। बूढ़ी अम्मा, उमा को जब देखती है तो हैरान हो जाती है, कि इतने सालों में इस बंगले पर कोई नहीं आया तो यह लड़की आखिर कहां से आ गई। वह उसे जाने के लिए कुछ इशारा करती है यह इशारे उमा समझ नहीं पाती है और जल्दी से अपने कमरे में चली जाती है।
उमा अपने कमरे में बैठी होती है कि तभी अचानक दूसरे कमरे से एक आवाज आती है जैसे मानो कोई बातें कर रहा हो, खुशर….. खुशर….. खुशर……। उमा उस कमरे में जाती है लेकिन वहां कोई दिखाई नहीं पड़ता है, तो वह अपने कमरे में लौट कर आ जाती है। फिर अगली सुबह वह अपनी मम्मी को फोन करके सारी घटना बताती है। उसकी मां इस बारे में कुछ नहीं जानती है और वह उसकी बातों को सच नहीं मानती है। उमा का ड्राइवर उसकी बातों को सुनता है तो वह जल्दी से भागता हुआ उसके पास आता है, उमा से कहता है कि मैम साहब यहां पर कुछ तो गड़बड़ है मुझे भी कल रात को बाहर वाले कमरे से कुछ आवाजें आ रही थीं।
खैर दूसरा दिन आता है, उमा फिर से उस बूढ़ी अम्मा को बाहर देखती है। उमा उसके पास तेजी से भागती हुई जाती है और उससे इस बंगले के बारे में पूछती है। लेकिन बूढ़ी अम्मा कुछ कह नहीं पाती है क्योंकि उसके मुंह से आवाज नहीं निकलती है क्योंकि उमा के पीछे उसे कुछ ऐसा दिख जाता है जिसे देखने के बाद वह बूढ़ी अम्मा बहुत डर जाती है। और फिर बुढ़िया मां अपने घर को चली जाती है। इस बार उमा का ड्राइवर बूढ़ी अम्मा के इशारों को समझ जाता है लेकिन उस ड्राइवर को वहां पर कुछ भी नजर नहीं आता है। वह ड्राइवर उमा के पास आता है और उससे कहता है कि वो अम्मा, आपके पीछे इशारा कर रही थी जरूर आपके पीछे कोई ऐसा था जिसे बुढ़िया देख रही थी पर आप नहीं देख पा रही थी और ना ही मैं देख पा रहा था।
फिर रात हो जाती है उमा जैसे ही अपने कमरे की ओर बढ़ती है तो वह खिड़की से देखती है की कुएं में से आवाजें आ रही हैं। फिर उमा अपने ड्राइवर के साथ उस कुएं के पास जाती है। वह जैसे ही कूएं के पास जाती है, वह देखती है कि कुएं में से एक अजीब सी रोशनी निकल रही है। उस कूएं में सीढ़ियां बनी होती हैं और उमा और उसका ड्राइवर उस सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं, नीचे एक गेट लगा होता है उसके अंदर एक सुनसान सी गुप्त सुरंग जा रही होती है। उस सुरंग में बहुत अंधेरा होता है। ड्राइवर उमा से मना करता है, कि मैम साहब इसके अंदर जाना, एक तरह से मौत को दावत देने के बराबर होगा इसलिए मैं कहता हूं वापस लौट चलिए। लेकिन उमा को इसकी कोई परवाह नहीं थी। वह दोनों जैसे ही आगे बढ़ते हैं उस सुरंग के दूसरे मोड़ पर वुप्प अंधेरा होता है और वहां से उनको ऐसा लगता है जैसे उनके पीछे कोई खड़ा है। जैसे ही टावर पीछे मुड़कर देखता है तभी उन्हें कोई जोर से धक्का देता है। दोनों इतने डर जाते हैं कि भागते हुए तुरंत ऊपर आ जाते हैं।
अब तो ड्राइवर बहुत डर जाता है। और वह मेमसाब से कहता है मैम साहब अब यहां से चलीए। मैं अभी यहां और ज्यादा नहीं रुक सकता इस हवेली में जरूर कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है। उमा अपने कमरे में जैसे ही कदम बड़ाती है तभी उसे कुएं में से कोई चिल्लाता हुआ सुनाई पड़ता है। वह कह रहा होता है चली जाओ यहां से….. चली जाओ यहां से……। बहुत ज्यादा डर जाती है और फिर अपने कमरे में सोने चली जाती है। रात के 12:00 बजे वह देखती है कि उसके सिरहाने पर कोई खड़ा है। वह यह सब देखकर बहुत डर जाती है। जैसे ही वह ऊपर उठती है वह आत्मा उसका गला दबाने लगती है। पर उमा चिल्ला नहीं पाती है, उसके टेबल पर एक पानी का गिलास रखा होता है, कैसे ना कैसे करके वह पानी का गिलास पकड़ती है और दरवाजे की तरफ फेंक के मारती है। गिलास की आवाज सुनकर ड्राइवर भागता हुआ आता है और वह देखता है कि मैम साहब जमीन पर गिर पड़ी हैं। उमा अपने ड्राइवर को सारी कहानी सुना देती है तब ड्राइवर बोलता है कि मेम साहब यहां पर जरूर कुछ हुआ है इसीलिए यह आत्मा हमें परेशान कर रही है।
उमा को बहुत गुस्सा आता है और वह गुस्से में कहती है कि अब तो मैं इस गुत्थी को सुलझा कर ही मानूंगी। मैं यहां से नहीं जाऊंगी और यहां पर क्या हुआ है, यह सब जानकर ही रहूंगी। मैं इस बंगले का पूरा सच जानकर ही मानूंगी। अगली सुबह उसे वह बुढ़िया फिर से नजर आती है। लेकिन इस बार वह बुढ़िया कुछ कहना चाह रही है। वह अपने हाथों के इसारे से बताती है कि सामने एक चर्च है, तुम्हें उस चर्च पर जाना चाहिए। इतना ही कह कर वह बुढ़िया वहां से चली जाती है। उमा उस चर्च के पास जाती है और वहां पर एक बूढ़े से पादरी होते हैं उनसे मिलती है। उमा, पादरी से उस बंगले के बारे में पूछती है तो पादरी उसे उस बंगले की कहानी सुनाता है।
चर्च का पादरी बताता है कि बहुत साल पहले इस बंगले में तुम्हारे पापा और मम्मी तुम्हारे दादा, दादी के साथ रहते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था। तुम्हारे पापा जिस जगह पर काम करते थे। वहां से उन्हें ज्यादा आमदनी नहीं हो पा रही थी, जिसकी वजह से वह बहुत परेशान रहते थे। उधर उनका एक दोस्त काम करता था। उस दोस्त ने कहा कि मैं तुम्हें दूसरी जगह पर काम दिलवा दूंगा। लेकिन इसमें बहुत सा पैसा खर्च होगा। अगर तुम मुझे वह पैसे दे दो तो मैं तुम्हारा काम कर दूंगा और तुम्हें अच्छी नौकरी दिलवा दूंगा। इसीलिए तुम्हारे पापा ने उस बंगले को बेचने का निर्णय ले लिया। लेकिन तुम्हारे दादा और दादी इस बात से राजी नहीं थे। इसके चलते तुम्हारे दादा, दादी और पापा के बीच में हर दिन झगड़ा होता रहता था। इसी बीच तुम्हारे दादा, दादी को तुम्हारे पापा ने मार दिया और मरने के बाद उनकी लाश को पास वाले कुएं में गाड़ दिया। इसीलिए तुम्हारे दादा और दादी की आत्मा इस बंगले में भटक रही है। उमा कहती है कि मुझे एक बुढ़िया दिखाई देती है। जब मैं उसके पास जाती हूं तो वह चली जाती है। पता नहीं कौन है? तो पादरी कहता है कि वह बुढ़िया ही तुम्हारी दादी हैं और वह जिंदा नहीं है वह मर चुकी हैं। उनकी आत्मा तुम्हारे सामने दिखाई देती है।
उमा उस पादरी से अपने दादा, दादी की मुक्ति के लिए उपाय पूछती है। उमा पादरी को उस बंगले में लेकर आती है और उस कूएं वाले रास्ते पर तीनों लोग जाते हैं। वहां से थोड़ा अंदर जाने के बाद उन्हें अपने दादा, दादी के मृत शरीर मिल जाते हैं। उमा अपने विधि-विधान के साथ उनके शरीर को मुक्ति दिलाने के लिए मुखाग्नि दे देती है और इस तरह से उस बंगले से आत्माओं का प्रकोप दूर हो जाता है।