भारत में साड़ी पहने की प्रथा कब शुरू हुई ?

भारतीय संस्कृति में साड़ी ऐसा परिधान है, जो भारत के अधिकांश राज्यों में भिन्न तरह से ओढ़ा जाता है।

चाहे वह दक्षिण में तमिलनाडु हो या पश्चिम का गुजरात या हो बनारसी साड़ी या फिर बंगाल की धोती; साड़ी को इन सभी राज्यों में उनके पर्व या त्योहारों के दिन पहना जाता है। इसे पारंपरिक वेशभूषा भी कहा जा सकता है ।

देखा जाए, साड़ी भारतीयता का सूचक है जिसका अपना अलग इतिहास है। तो जानते है कि भारत में साड़ी का इतिहास क्या है ।

साड़ी का इतिहास

साड़ी का उल्लेख वेदों में मिलता है। यजुर्वेद में साड़ी शब्द का सबसे पहले उल्लेख मिलता है। दुसरी तरफ ऋग्वेद की संहिता के अनुसार यज्ञ या हवन के समय स्त्री को साड़ी पहनने का विधान भी है।
साड़ी विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में एक है। इसकी लंबाई सभी परिधानों से अधिक है
भारतीय साड़ी का उल्लेख पौराणिक ग्रंथ महाभारत में भी मिलता है जहां, साड़ी को आत्मरक्षा का प्रतीक माना गया था। महाभारत के अनुसार जब दुर्योधन ने द्रौपदी को जीतकर उसकी अस्मिता को सार्वजनिक चुनौती दी थी। तब श्रीकृष्ण ने साड़ी की लंबाई बढ़ाकर द्रौपदी की रक्षी की थी।
यदि देखें साड़ी प्राचीन काल से चली आ रही है। जिसमें रीति रिवाज के अनुसार साड़ी पहनी जाती है। विवाहित महिला जहां रंगीन साड़ी पहनती है वहीं विधवा महिलाएं सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं। इसके अलावा साड़ी मे समय के अनुसार परिवर्तन हुए हैं। जो अब डिजाइनर साड़ी में देख सकते हैं। अब विवाहित महिला डिजाइनर साड़ी पहनती हैं वहीं सफेद रंग के डिजाइनर साड़ियों से मार्किट भरा है।
साड़ी की संस्कृती के साथ ही इसको पहनने के भी कई तरीके हैं। या कहें भौगोलिकता के अनुसार साड़ी को भिन्न तरीके से पहना जाता है। उत्तरभारत मे साड़ी का पल्ला पीछे व आगे से लिया जाता है। वहीं गुजरात में साड़ी का पल्ली आगे से लिया जाता है। दक्षिण में साड़ी का एक अलग तरीका देखा जाता है। वहां महिलाएं लंबी स्कर्ट रूपी वस्त्र पहनकर साथ ही चुन्नी ओढ़ती है। साथ ही महाराष्ट्र में धोती की रूप मे साड़ी को पहना जाता है।
साडियों के भौगोलिक स्थिति के अलावा, भारत के हर राज्य में साड़ी को अलग नाम से पहचाना जाता है। जिसमें मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रशम, दिल्ली की रशमी साड़ियां, झारखंडी कोसा रशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियां, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियाँ हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *