भारत में पहले आधारकार्ड धारक कौन थे?
रंजना सोनावाने एक आम महिला है जो अपनी छोटी सी झोपड़ी में रहती है। रोजाना काम की तलाश में यहां-वहां भटकती रहती है। उसके पास न खाना पकाने को गैस है, न बिजली और न ही शौचालय। नोटबंदी के बाद अब उसके पास अपना पेट पालने के लिए कोई काम भी नही है।
लेकिन फिर भी उसकी एक अनूठी पहचान है। वह आधार कार्ड पाने वाली पहली भारतीय है। जिसे बनाया गया था ताकि लोग इससे सरकारी योजनाओं, बैंकिंग और बीमा जैसी सुविधाएं आसानी से प्राप्त कर सकें। कांग्रेस सरकार ने आधार परियोजना शुरू करने के लिए उत्तर महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में तेम्भाली का चयन किया था।
23 जून को इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकनी को तत्कालीन सरकार, यूपीए ने परियोजना का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था। उन्हें यूआईडीएआई के अध्यक्ष की नव निर्मित स्थिति दी गई, जो कैबिनेट मंत्री के पद के बराबर थी।
रंजना कहती हैं मुझे जीवन यापन में बहुत मुश्किल हो रही है, यह उसके लिए कठिन है जो रोजी लेकर काम करती हो और साथ ही मेले में जाकर खिलौने बेचती हो। मुझे लगता है कि सभी सरकार सिर्फ राजनीति के लिए गरीबों का इस्तेमाल करती है और वास्तव में अमीरों के लिए काम करती है। मेरे लिए दैनिक काम करना कठिन हो गया है क्योकि किसानों का कहना है कि उन्हे बैंको से नगद नही मिल रहा है इसलिए वो किसी को काम पर नही रख सकते। मै सारंगखेड़ा मेले में खिलौने की एक दुकान लगाना चाहती हुं पर नही कर सकती क्योकि मेरे पास यात्रा करने के लिए भी पैसे नही है।
उत्तर महाराष्ट्र में ग्राम तेम्भाली, पुणे से लगभग 470 किमी दूर है जो भारत के पहले आधार गांव के रूप में संक्षिप्त रूप से प्रसिद्ध है। आधार कार्ड पाने वाली पहली भारतीय का कहना है कि, यहां न ही कोई बैंकिंग है और न ही कोई बीमा। नेता आये और उन्होने आधार कार्ड थमा दिया, साथ में फोटो खिंचाया और चले गये। उसके बाद इस गांव का हाल क्या है यह पुछने आज तक कोई नही आया। न ही हमारे पास सब्सिडी है न ही बिजली, इस बेकार आधार कार्ड से हमारा गुजारा नही होगा।
रंजना सोनावने को पहला आधार कार्ड पाने के लिए जाना जाता हो पर इससे उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है।