भारत के चार धाम कौन से हैं और इनकी शुरूआत कैसी हुई है? जानिए
महात्मा बुद्ध के बौद्ध धर्म शुरू करने के बाद हिंदू या सनातन धर्म अधोगति को प्राप्त हुआ और बुद्ध धर्म मे सनातन कि कमियों को सुधारा गया तथा संघ के महत्व को अपनाया गया. बौद्ध भिक्षु बनकर किसी भी व्यक्ति के अहंकार को कम करने का प्रयोजन किया गया. सबको समानता, अहिंसा, सत्य विश्वास को बढ़ावा, जातिवाद, कर्मकांड, बलि, पशुवध, पुरातन परम्परा आदि को नकारा गया. अहिंसा के बढ़ने के कारण क्षत्रिय धर्म विमुख होकर भिक्षु बन गए और देश कि सीमाएं सिकुड़ने लगी.
इसके बाद भारत भूमि पर शंकर जी ने अवतार लिया केरल मे शंकराचार्य बने और सनातन को बढ़ाया. अद्वैतवाद का सिद्धांत दिया. मात्र 32 वर्ष ही जीवित रहे सन 688 से 720 तक और सनातन परम्परा को संगठित करके नविन हिंदू धर्म बनाया. जिसमे नवींन क्षत्रिय बने. अबू पर्वत पर यज्ञ किया गया. चार नए राजपूत कुल उभरे जो परिहार चाहमान, परमार और सोलंकी नाम से विख्यात हुए. कर्मकांड जातिवाद और धर्म को संगठित करने कि व्यवस्था कि गयी. जाती जन्म से हो गयी व्यवसाय पीछे छूट गया. कर्मकांड महंगा महत्वपूर्ण हो गया. पुरानी परम्पराओं मे सुधार किया. सती व्यवस्था भी चल निकली. साधु सन्त के बनाये गए. साधु सन्त बनने कि परम्परा बनी. धर्म मे चार मठ बने चार धाम बनाये. देशाटन को महत्व दिया और पुरे भारत मे एक जुट एक सूत्र मे हिन्दुओं को पिरोने कि परम्परा बनाई. इसी नवीं हिंदू धर्म मे चार धाम चारों दिशाओं मे बनाये गए और उनके लिए अलग अलग जगह के पुजारी नियुक्त किये गए तथा साधु संतो को ज्ञान बढ़ाने और उसका परासर करने के लिए नमित किया. हर धाम को एक वेद से और विशेष पुजारियों कै नाम से जोड़ा गया. चार धाम निम्न है.
.श्री बद्रीनाथ जी उत्तर दिशा मे हिमालय पर्वत पर आजकल के उत्तराखंड राज्य मे.
श्री द्वारिकाधीश पश्चिम दिशा मे आजकल के गुजरात राज्य मे द्वारिका नगरी मे जिसे हिन्दुओं कि पुण्य पावन नगरियों मे गिना जाता है .
श्री जगन्नाथ भगवान पूर्व मे समुद्र तट पर आजकल के उड़ीसा राज्य मे जगन्नाथपुरी मे
और दक्षिण दिशा मे श्री रामेश्वरम महाराज जहां से भगवान श्रीराम ने रावण के विरुद्ध लंका अभियान शुरू किये और जो समुद्र तट पर स्थिति है. यही चारों पवित्र पावन हिंदू धाम है जिनकी स्थापना श्री शंकराचार्य जी द्वारा कि गयी.
रामेश्वरम गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा है. अनेकों पिलर एक सीधी रेखा मे सबसे अधिक मेरा मे यही है.
अंत मे अपने उत्तर दिशा मे श्री बद्रीनाथ कि स्थापना कर केदारनाथ गए और वहां पर किसी चिड़वश जैन मुनियों ने इनको विष किसी खाणे कि वस्तु मे षणयंत्र करके खिला दिया. केदारनाथ मे ही अपने शरीर त्याग दिया. आज भी श्री शंकराचार्य जी कि समाधी श्री केदारनाथ मे हिमालय पर्वत मे है.