भारत का सबसे लोकप्रिय स्वतंत्रा सेनानी कौन है?

1. मंगल पांडे

मंगल पांडे देश की आजादी का बिगुल बजाया था. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. मंगल पांडेय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे. भारत के स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. मंगल पांडे के विद्रोह की शुरुआत एक बंदूक की वजह से हुई. बंदूक को भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था. कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी, जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी. सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है. 21 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पांडेय जो दुगवा रहीमपुर(फैजाबाद) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेंट बाग पर हमला कर उसे घायल कर दिया था. 6 अप्रैल 1557 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी.

2. खुदीराम बोस

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था. उनके मन में देश की आजादी को लेकर इतना जुनून था कि उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई को छोड़कर मुक्ति आंदोलन में गए थे. इस बहादुर नौजवान को 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई थी उस समय उनकी उम्र 18 साल कुछ महीने थी. अंग्रेज सरकार उनकी निडरता और वीरता से इस कदर आतंकित थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. इस फैसले के बाद क्रांतिकारी खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर खुशी-खुशी फांसी पर चढ़ गए. खुदीराम की लोकप्रियता का यह आलम था कि उनको फांसी दिए जाने के बाद बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था और बंगाल के नौजवान बड़े गर्व से वह धोती पहनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे.

3. भगत सिंह

उन दिनों शहीद भगत सिंह का एक नारा था, जो आज ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ के नाम से हर देशवासियों की जबान पर है. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी सेंट्रल असेंबली में बम फोकने के आरोप में दी गई थी. भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे सिपाही रहे हैं, जिनका जिक्र आते ही शरीर में देशभक्ति के जोश से रोंगटे खड़े होने लगते हैं. भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था. यह जिला अब पाकिस्तान है. उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था. 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला था. चन्द्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भगत सिंह ने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया. लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद सेंट्रल असेंबली में बम फेंक कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की.

4. सुखदेव थापर

सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर है. उनका जन्म 15 मई 1907 में हुआ था. इनका पैतृक घर भारत के लुधियाना शहर, नाघरा मोहल्ला, पंजाब में है. इनके पिता का नाम राम लाल था. बचपन से ही सुखदेव ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश सरकार ने भारत पर किए थे. जिसने उन्हें क्रांतिकारियों से मिलने के लिए बाध्य कर दिया. उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त करने का प्रण किया. सुखदेव लाहौर नेशनल कॉलेज में युवाओं को शिक्षित करने के लिए गए और वहां उन्हें भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में अत्यन्त प्रेरणा मिली. उन्होंने अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारियों के साथ लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ की शुरुआत की. जो विभिन्न गतिविधियों में शामिल एक संगठन था. इन्होंने मुख्य रूप से युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए प्रेरित किया था. सुखदेव ने खुद कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे वर्ष 1929 में ‘जेल की भूख हड़ताल’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी. लाहौर षडयंत्र के मामले (18 दिसंबर 1928) में उनके साहसी हमले के लिए, उन्हें हमेशा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में याद किया जाएगा, क्योंकि उसमें इन्होंने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया था.

5. बाल गंगाधर तिलक

23 जुलाई 1856 को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक का 162वां जन्मदिन है. पुणे के डेक्कन कॉलेज से स्नातक करने के बाद तिलक गणित के अध्यापक बन गए. उस दौर में अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों पर लगातार जुल्म ढा रही थी. तिलक से यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और 1890 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन कर लिया. तिलक ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अखबार निकाला. इस अखबार का नाम केसरी था. इसमें उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लगातार लेख लिखे. उनके लेख के कारण दो अंग्रेजी अधिकारियों का खून हो गया और हिंसा भड़काने के आरोप में तिलक को 18 महीने के लिए जेल में डाल दिया गया. तिलक महात्मा गांधी के अहिंसा के मार्ग की हमेशा आलोचना करते रहे. उनका मानना था कि इस तरीके से आजादी नहीं मिल जाए. तिलक को देश स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रवादी, समाज सुधारक के तौर पर याद करती है.

5. चन्द्रशेखर आजाद

मध्य प्रदेश के बावरा में आज ही के दिन अमर शहीद क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था. वही आजाद जिनका बचपन में नाम चंद्रशेखर तिवारी था. वही आजाद जो सिर्फ 15 साल की आयु में ब्रितानियां हुकूमत से लड़ने के लिए आजादी की लड़ाई में कूद गए. तिलक की तरह आजाद का मन भी महात्मा गांधी के रास्ते से 1922 में तब उठ गया जब असहयोग आन्दोलन असफल हुआ. इसके बाद उन्होंने राम प्रसाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ज्वाइन की. इस संगठन का हिस्सा बन कर वह अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांति के दम पर आजादी के लिए संघर्ष करने लगे.

आजाद ने 1925 में उन्होंने काकोरी में ट्रेन को लूटा. इसके उनकी मुलाकात भगत सिंह और सुखदेव से हुई. ब्रितानियां सरकार इन लोगों की तलाश कर रही थी. 27 फरवरी 1931 को आजाद जब सुखदेव से मिलने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें घेर लिया. दोनों तरफ से गोलीवारी शुरू हो गई. आजाद ने तीन पुलिस वालों को मार डाला और फिर खुद को गोली मार ली. इस तरह भारत मां का यह सपूत हमेशा आजाद रहा क्योंकि उन्होंने खुद से वादा किया था कि वह कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के हाथों नहीं पकड़े जाएंगे.

6. महात्मा गांधी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महात्मा गांधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की के बारे में लोग जानते थे, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह, शांति और अहिंसा के रास्तों पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता. गांधी ने सत्याग्रह का नेतृत्व किया, हिंसा के खिलाफ आंदोलन, जिसने अंततः भारत की आजादी की नींव रखी. उनके जीवनभर की गतिविधियों में किसानों, मजदूरों के खिलाफ भूमि कर और भेदभाव का विरोध करना शामिल हैं. वो अपने जीवन के अंत तक अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ते रहे. महात्मा गांधी ने साबित किया था अहिंसा पर चलकर कोई भी जंग जीता जा सकता है. गांधी जी आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं. बता दें कि 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली में नाथुरम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी.

7. जवाहरलाल नेहरू

पंडित जवाहरलाल नेहरू एक बैरिस्टर और भारतीय राजनीति में एक केन्द्रित व्यक्ति थे. आगे चलकर वो राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने. बाद में वह उसी दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधीजी के साथ जुड़ गए. भारतीय स्वतंत्रता के लिए 35 साल तक लड़ाई लड़ी और तकरीबन 9 साल जेल भी गए. 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964 तक पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधान मंत्री बने थे. उन्हें आधुनिक भारत के वास्तुकार के नाम से भी जाना जाता है. वह भारतीय स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के साथ सम्पूर्ण ताकत से लड़े, असहयोग आंदोलन का हिस्सा रहे. जवाहरलाल नेहरू को चाचा नेहरू और पंडित जी के नाम से भी बुलाया जाता है. उनके पिता का नाम ‘पं. मोतीलाल नेहरू’ और माता का नाम ‘श्रीमती स्वरूप रानी’ था.

8. सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. उनके पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती’ था. वे 1920 के अंत तक राष्ट्रीय युवा कांग्रेस के बड़े नेता माने गए और सन् 1938 और 1939 को वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने. उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक (1939- 1940) नामक पार्टी की स्थापना की. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ जापान की सहायता से भारतीय राष्ट्रीय सेना “आजाद हिन्द फ़ौज़” का निर्माण किया. 05 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने “सुप्रीम कमांडर” बन कर सेना को संबोधित करते हुए “दिल्ली चलो” का नारा लागने वाले सुभाष चन्द्र बोस ही थे. 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया था इसलिए आज भी उनकी मृत्यु एक रहस्य है.

9.लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे. क्या आप जानते हैं कि भारत में पूर्ण स्वराज की माँग उठाने वाले यह पहले नेता थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके नारे ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा’ ने लाखों भारतियों को प्रेरित किया. ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें ‘अशांति का जनक’ ‘Father of the Unrest’ कहा. उन्हें ‘लोकमान्य’ शीर्षक दिया गया, जिसका साहित्यिक अर्थ है ‘लोगों द्वारा सम्मानित’.

केसरी में प्रकाशित उनके आलेखों से पता चलता है कि वह कई बार जेल गए थे. लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया था. इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंगरेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया. 1 अगस्त,1920 को मुम्बई में उनका निधन हो गया था.

10. लक्ष्मी सहगल

लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी हैं. वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं. वो व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं. लक्ष्मी आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गई थी. वो बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थी और जब महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया थी. लक्ष्मी 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनी थी. आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झांसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं. बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा. आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे पकड़ी गई पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया. लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गई.

11. भीकाजी कामा

श्रीमती भीकाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया. वो जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए प्रसिध्द हैं. उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है.
उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित ‘वन्देमातरम्’ पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ. 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा, ‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है. एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है.’

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