भगवान कृष्ण को बंसी किसने दी और किस वस्तु की बनाई गई थी? जानिए

द्वापरयुग के समय जब भगवान श्री कृष्ण ने धरती में जन्म लिया तब देवी-देवता वेश बदलकर समय-समय पर उनसे मिलने धरती पर आने लगे। इस दौड़ में भगवान शिवजी कहां पीछे रहने वाले थे, अपने प्रिय भगवान से मिलने के लिए वह भी धरती पर आने के लिए उत्सुक हुए।

परन्तु वह यह सोच कर कुछ क्षण के लिए रुके की यदि वे श्री कृष्ण से मिलने जा रहे तो उन्हें कुछ उपहार भी अपने साथ ले जाना चाहिए। अब वे यह सोच कर परेशान होने लगे कि ऐसा कौन सा उपहार ले जाना चाहिए जो भगवान श्री कृष्ण को प्रिय भी लगे और वह हमेशा उनके साथ रहे।

तभी महादेव शिव को याद आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है। ऋषि दधीचि वही महान ऋषि है जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था व अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थी। उन हड्डियों की सहायता से विश्कर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गाण्डीव, शारंग तथा इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था। महादेव शिवजी​ ने उस हड्डी को घिसकर एक सुन्दर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब शिवजी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पंहुचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बंसी प्रदान की। उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार हर रोज़ कृष्ण बगीचे में जाकर सभी पौधों से कहते थे, “मैं तुमसे प्रेम करता हूँ.” यह सुनकर सभी पौधे अत्यधिक प्रसन्न होते थे और जवाब में वे कृष्ण से कहते थे, “कृष्ण, हम भी आपसे प्रेम करते हैं.”

एक दिन अचानक तेज़ी से दौड़ते हुए कृष्ण बगीचे में आए और सीधे बांस के वृक्ष के पास गए.

वृक्ष ने कृष्ण से पूछा, “कृष्ण, क्या बात है?” कृष्ण ने कहा, “यद्यपि यह बहुत मुश्किल है परन्तु मुझे तुमसे कुछ पूछना है.” बांस ने कहा, “आप मुझे बताइए. यदि संभव होगा तो मैं अवश्य आपकी सहायता करूँगा.” इस पर कृष्ण बोले, “मुझे तुम्हारा जीवन चाहिए. मैं तुम्हें काटना चाहता हूँ.” बांस ने क्षणभर के लिए सोचा और फिर बोला, “आपके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है? क्या दूसरा कोई रास्ता नहीं है?” कृष्ण बोले, “नहीं, बस यही एक रास्ता है.” बांस ने कहा, “ठीक है, मैं स्वयं को आपको समर्पित करता हूँ.”

जब कृष्ण बांस को काटकर उसमें छेद कर रहे थे तब बांस दर्द से चिल्ला रहा था क्योंकि छेद बनाने से बांस को बहुत पीड़ा हो रही थी. परन्तु काटने व तराशने की प्रक्रिया के दौरान होने वाली पीड़ा और दर्द को सहने के बाद, बांस ने स्वयं को एक मनमोहक बांसुरी में रूपांतरित पाया. यह बांसुरी हर समय कृष्ण के साथ रहती थी.

इस बांसुरी से गोपियाँ भी ईर्ष्या करती थीं. उन्होंने बांसुरी से कहा, “अरे, कृष्ण हैं तो हमारे भगवान पर फिर भी हमें उनके साथ केवल कुछ समय ही व्यतीत करने को मिलता है. वह तुम्हारे साथ ही सोते हैं और तुम्हारे साथ ही उठते हैं. तुम हर समय उनके साथ रहती हो.” एक दिन उन्होंने बांसुरी से पूछा, “हमें इसका रहस्य बताओ. क्या कारण है कि भगवान कृष्ण तुम्हें इतना संजोकर रखते हैं?”

बांसुरी ने उत्तर दिया, “इसका रहस्य यह है कि मैं अंदर से खोखली हूँ. और मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं है.”सही मायने में आत्मसमर्पण इसी को कहते हैं.

इसके अतिरिक्त भी बांसुरी से हमें 3 शिक्षा और मिलती हैं.

पहला- बांसुरी में गांठ नहीं है। वह खोखली है। इसका अर्थ है अपने अंदर किसी भी तरह की गांठ मत रखो। चाहे कोई तुम्हारे साथ कुछ भी करे बदले कि भावना मत रखो।

दूसरा- बिना बजाए बजती नहीं है, यानी जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो। बोल बड़े कीमती है, बुरा बोलने से अच्छा है शांत रहो।

तीसरा- जब भी बजती है मधुर ही बजती है। मतलब जब भी बोलो तो मीठा ही बोलो जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते है, तो उसे उठाकर अपने होठों से लगा लेते हैं।

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