बीजेपी जब सत्ता में नहीं थी तो निजीकरण का विरोध करती थी, अब सत्तारूढ़ होते ही लगभग हर क्षेत्र में निजीकरण की पक्षधर है, ऐसा क्यों?

चेतावनी:- मोदी समर्थक को यह कटाक्ष चुभ सकता है इसलिए आप इसके आगे ना पढ़े| ?

जब भी सरकार को राजकोषीय घाटा होती है वह सरकारी कंपनी के शेयर को बेच कर इसकी भरपाई करते हैं|

अगर पिछले वर्ष की बात किया जाय तो कुल राजकोषीय घाटा 6.45 लाख करोड़ रुपए का है| इसका मतलब यह हुआ कि कमाई कम हुई और खर्चा ज्यादा| लेकिन सरकार सिर्फ विनिवेश नहीं कर रही बल्कि उसका निजीकरण कर रही है| यानी की 51% से अधिक की हिस्सेदारी बेच रही है जिससे कंपनी के मालिकाना हक सरकार से हटकर ख़रीदार के पास चला जाता है| जब किसी कंपनी का वर्चस्व सरकारी तंत्र पर बढ़ता जाता है तो देश की व्यवस्था एक तरह से उस कंपनी के हाथों में आती चली जाती है। मोदी सरकार का सरकारी कंपनियों का निजीकरण करने का निर्णय देश का गुलामी की ओर ले जा रहा है।

देश की निजीकरण की ओर जाने से सबसे अधिक नुकसान नौकरीपेशा व्यक्ति का होना वाला है। पहले से ही रोजगार के अभाव में श्रमिकों का शोषण चरम पर है। अब जब पूरी व्यवस्था निजी कंपनियों के हाथों में आ जाएगी तो यह शोषण अत्याचार में बदलना शुरू हो जाएगा|

गत दिनों देश के स्वाभिमान लालकिले के निजीकरण की बात भी सामने आई थी। रक्षा विभाग में निजीकरण की बात सुनी जा रही है। यदि सब कुछ निजी हाथों में ही देना है तो फिर देश भी निजी हाथों में दे दो। फिर क्या जरूरत है चुनाव पर इतना पैसा बहाने की। देश में क्या जरूरत है विभिन्न सदनों की। क्या जरूरत है न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका की। जब सब कुछ निजी हाथों में ही देना है तो फिर इन तंत्रों पर सरकारी पैसों की फिजूलखर्ची क्यों। देश को चलाने का जिम्मा भी निजी हाथों का सौंप दिया जाए।

जब ये लोग सरकारों से अच्छी कंपनियां चला सकते हैं तो देश भी इनसे अच्छा चला लेंगे। वैसे भी राजनीतिक दल लूट-खसोट और वोटबैंक के अलावा कुछ कर तो नहीं रहे हैं। विभिन्न सदनों में भी धंधेबाज लोग बैठे हैं। अधिकतर लोग भी इन कंनिपयों को चलाने वाले ही हैं तो फिर जनता को क्यों बेवकूफ बनाने में लगे हो। देश का ही निजीकरण करके देश इन पूंजीपतियों को सौंप दो। वैसे भी देश में जनता के लिए देश को चलाने वाले नेता तो बचे नहीं। जब इन नेताओं को कारपोरेट घरानों का ही फायदा कराना है तो फिर इन राजनीतिक दलों, राजनेताओं, नौकरशाह और सरकारों की जरूरत ही क्या है |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *