बसंत पंचमी शौर्य गाथा किस महान राजा व वीर योद्धा से संबंधित है? जानिए
वसंत ऋतु प्रकृति का सबसे सुंदर रूप है इस ऋतु में प्रकृति अपने सौंदर्य की चरम सीमा पर होती है प्रकृति का कण-कण खिला हुआ व अपने सौंदर्य की छटा बिखेरता है। बसंत पंचमी के साथ कई गाथाएं जुड़ी है इनमें शौर्य गाथा पृथ्वीराज चौहान की है।
बसंत पंचमी का दिन हमें हिंद शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान की याद दिलाता है उन्होंने विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को 16 बार पराजित करने के बावजूद जीवनदान दिया था। परंतु 17वी बार जब वे पराजित हुए तो गोरी ने उन्हें बंदी बना लिया और अपने साथ अफगानिस्तान ले गया जहां उसने उनकी आंखें फोड़ दी।
पृथ्वीराज के कवि चंदबरदाई जब उनसे मिलने काबुल पहुंचे तो वहां पहुंचकर कैद खाने में अपने महाराज की दयनीय दशा देखकर बहुत दुखी हुए और उन्होंने बदला लेने की योजना बनाई।
चंदबरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे सम्राट बड़े प्रतापी हैं और उन्हें शब्दभेदी बाण याने आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना आता है यदि आप चाहें तो इनकी इस कला का प्रदर्शन स्वयं देख सकते हैं इस पर गौरी तैयार हो गया और उसने सभी को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठा चंदबरदाई के निर्देशानुसार लोहे के साथ बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगाए गए क्योंकि पृथ्वीराज की आंखें निकाल दी गई थी अतः उन्हें बेड़ियों से आजाद कर बैठने के लिए निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथ में धनुष बाण थमाया गया।इसके बाद चंदबरदाई ने पृथ्वीराज की वीरगाथा ओं का गुणगान करते हुए विरुदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत कराया।
” चार बांस चौबीस गज, अंगूल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।”
अर्थात चार बांस 24 गज और 8 अंगुल जितनी दूरी पर सुल्तान बैठा है अतः चौहान बिना चुके अपने लक्ष्य को हासिल करो इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का अंदाजा हो गया। अब चंदबरदाई ने गौरी से कहा की पृथ्वीराज आपके बंदी है अतः आप इन्हें आदेश दें तभी वे शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा दी पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने एक क्षण की भी देरी किए बगैर अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया गौरी के नीचे गिरते ही भगदड़ मच गई इस बीच चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने अपनी निर्धारित योजना के अनुसार एक दूसरे को कटार मारकर प्राण त्याग दिए।
आत्म बलिदान की यह घटना 1192 ईस्वी में बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।