बसंत पंचमी, जिसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है, यह त्यौहार आप कैसे मनाते हैं ? जानिए

ओड़िशा के स्कूल, कॉलेज आदि में दो पूजा मनाया जाता है स्थानीय रूप से। इसको कोई धर्म का रूप नहीं दिया जाता, तथा हिन्दू, मुस्लिम, इसाई सभी बच्चे इसमें भाग लेते हैं। वो दोनो पूजा है गणेश पूजा, सरस्वती पूजा( वसंत पंचमी)।

तो ज़ाहिर सी बात है वसंत पंचमी को हम अपने कॉलेज में भी मनाते हैं। बच्चों ने खुद साजसज्जा करने का जिम्मा ले रखते हैं। उनके लिए यह कोई बड़ी त्योहार से कम नहीं। क्यों की यह उनके बोर्ड तथा वार्षिक परीक्षा से पहले आता है। तो सब बच्चे अपने किताबों को माता सरस्वती के पास चढ़ा कर अच्छे फल की मांग करते हैं।

यह रही पिछले साल की सरस्वती पूजा की तस्वीर। यह पूरा का पूरा साजसज्जा बच्चे खुद किए थे। पंडित जी को शायद पता था कि तस्वीर लिया जा रहा है। इसलिए पूरा भक्ति भाव से पोज दिए हैं। 🙂

बगल में देख रहें हैं कुछ किताबें, बाएं तरफ एक बड़ा सा पहाड़ था किताबों का, जिसमें हर बच्ची अपनी एक दो किताब दी हुई थी कि सरस्वती माता खुश होजाएं और उनके पढ़ाई में मन लगवा दें।:-)

इस बार लेकिन अभी बच्चों की प्रेक्टिकल शुरू होगया है। इसलिए बच्चों को नहीं सारे कर्मचारियों के ऊपर साजसज्जा तथा सम्पूर्ण पूजा का भार है। उसदिन पहले होम होता है देवी के पास। फिर सब में प्रसाद बंटता है। फिर शाम को भोज। और फिर जो सबसे ज़रूरी मांग रहती है बच्चों की, की उन्हे हॉस्टल में फिल्म दिखा जाए रात भर या फिर डीजे सिस्टम दिया जाए आधे रात तक नाचने केलिए। डीजे दश या साढ़े दश तक दिया जाता है और फिर एक या दो फिल्में दिखाया जाता है। इसिमें बचे खुश, और वे खुश तो हम सब खुश। लेकिन इस बार परीक्षा पहले होने के कारण उनकी मस्ती में पानी फिर गया। इसलिए थोड़ा दुःखी हैं बिचारे। 🙂

पिछले साल भाई था तो घूमने गए थे शाम को पंडाल देखने। ओड़िशा में सरस्वती पूजा में पंडाल भी बनता है। खास करके जो क्लब होते हैं छात्रों की वो आयोजन करते हैं।

यह रही सबसे बड़ी पंडाल पिछले साल की पूजा की शहर में। भाई ने खींचा था। इस बार घूमने जाना पता नहीं हो पाएगा कि नहीं।

तो यही है हमारी सरस्वती पूजा पालने की विधि। बचपन में एक छात्री के हिसाब से खुद इन सब में भाग लेती थी। और अभी भी वैसे ही मना रहे हैं, बस हमारी जगह अब छात्रों से हटकर उन अध्यपाकों में शामिल होगया है जो बच्चों पर निगरानी रखें। 😉

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