बसंत पंचमी के विषय में रोचक तथ्य क्या है? जानिए

बसंत पंचमी का त्यौहार भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार के आने का इंतजार सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों को होता है। बसंत पंचमी के अलावा इस त्यौहार को ‘श्रीपंचमी के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन देवी सरस्वती और भगवान कामदेव की पूजा अर्चना होती है। मां सरस्वती की पूजा ज्ञान, संगीत और कला की देवी के रूप में किया जाता है। यही कारण है कि इस दिन लगभग सभी स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। माना जाता है कि आज ही के दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था।

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन बच्चों को रीति के अनुसार अक्षर ज्ञान दिया जाता है, जिसमें उन्हें पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है। इसी तरह कामदेव को बसंत का दूत माना जाता है। कामदेव उल्लास और उमंग के प्रतीक हैं। माना जाता है कि जीवन में उत्साह और उमंग कामदेव ही भरते हैं और उन्हीं के आशीर्वाद से जीवन में सभी क्रियाक्लापों का संचालन होता है।

जीवन में उत्साह और उमंग की जरूरत क्या है, यह बताने की जरूरत नहीं है। आज के समय में जब हर आदमी हताश है, हर आदमी परेशान है और शारारिक तथा बौद्धिक रूप से थका हुआ है। ऐसे में उत्साह और उमंग की महत्वता और भी बढ़ जाती है। उत्साह से ही श्रम करके जीने की चाह उत्पन्न होती है और श्रम से ही जीवन चक्र चलता है।

बसंत ऋतु की इन्हीं खूबियों के कारण कई कवियों ने इस पर अपनी रचनाएं लिखी है। सिनेमा जगत में कुछ गीत ऐसे भी हैं, जो बसंत पर लिखे गए और हमेशा के लिए अमर हो गए। इस ऋतू के बारे में गीता में भगवान कृष्ण ने कहा था- ऋतुओं में मैं बसंत हूं।

बसंत मौसम का जितना महत्व पौराणिक है, उतना ही महत्व ऐतिहासिक और भौगोलिक भी है। भारतीय संस्कृति में बसंत को ऋतुराज राज यानी ऋतुओं का राजा कहा गया है। इस मौसम में जलवायु सम रहती है, यानी न ज़्यादा ठंडी और न ही ज़्यादा गर्म। खेतों में सरसों लहलहा रही होती है। गुलाब, गेंदा और सूरजमुखी की खुश्बू हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है। पेड़ों की पुरानी पत्तियां झड़ती हैं और उनमें नई कोमल और हरी पत्तियां उग आती हैं। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि दु:ख के बाद सुख जरूर आता है। वक्त कितना भी बुरा हो वह बदल जरूर जाता है।

बसंत पंचमी का यह दिन हमें महान योद्धा और राजा पृथ्वीराज चौहान की बहादुरता और वीरता की याद दिलाती है, जिन्होंने हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित करने के बाद भी जान से नहीं मारा था और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवन दान दिया था। लेकिन, जब 17वीं बार वे पराजित हुए तो गौरी ने उनके साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया। उन्हें क्षमा नहीं किया गया और न ही उनके साथ राजा जैसा सलूक किया गया। पृथ्वीराज को बंधक बना लिया गया और उनकी दोनों आंखे फोड़ दी गई।

किस्सा यहीं ख़त्म नहीं हुआ। उसके बाद जो होने वाला था, वो भारतीय इतिहास का सबसे गौरवमयी छन बनने वाला था। गौरी ने पृथ्वीराज की वो विद्या देखने की इच्छा जताई, जिसके बारे में उसने लोगों और अपने अधिकारीयों से सुना था। कार्यक्रम के अनुसार गौरी एक ऊंचे स्थान पर बैठा और उसने तवे पर चोट मारकर पृथ्वीराज को बाण चलाने की आज्ञा दी।

इस मौके का फायदा पृथ्वीराज के कवी चंबरबाई ने अपनी सूझबुझ से बड़ी ही चालाकी से उठाया। उन्होंने अपने राजा को इशारों ही इशारों में गौरी पर प्रहार करने का परामर्श कुछ इस तरह दिया।

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