पढ़िए मजेदार संत के सादग़ी भरे जीवन और निर्लोभता की कहानी

विजयनगर के कृष्णदेव राय ने जब राजगुरु व्यासराय से संतपुरन्दर दास की सादगी भरे जीवन और निर्लोभता के बारे में प्रसंसा सुना तो कृष्णदेव राय ने संत की परीक्षा लेने की ठान ली,उसी समय सयोंग से पुरन्दर दास ने हरिओम के ध्वनि की दस्तक़ दी जहा पर  कृष्णदेव राय जी का महल थाकृष्णदेव राय जी ने परीक्षा लेने के बहाने से मुट्ठी भर चावल लिए और उसमे कुछ हीरे मोती मिला कर भिक्षा के रूप में पुरन्दर दास के झोली में डाल दिये

पुरन्दर दास ने भिक्षा की झोली उठाइ और महल से चल दिए घर आ कर भिक्षा की झोली की झोली अपनी को दे दिया देवी से झोली में चावल देखे और उन्हें साफ करने लगी देवी को चावल में हीरे दिखाई दिए तो देवी ने पूछा,की आज भिक्षा कहा से लेकर आये है 

इस पर पुरन्दर दास ने जबाब दिया महल से,देवी ने चावल साफ किये और हीरे को चुन कर कुटिया की एक ओर रख दिए कुछ सप्ताह ऐसा ही चलता रहा,सप्ताह के अंत में महाराज ने राजगुरु व्यासराय से कहा की पुरन्दर दास हमे लोभी लगता है इस पर व्यासराय ने कहा महाराज संत जी के घर चलिए और सच्चाई खुद ही अपने आँखों से ही देख लीजियेदोनों ही संत के घर चले गए।

वहाँ पर उन्होने देखा की देवी चावल चुन रही है इस पर कृष्णदेव राय ने कहा बहन चावल चुन रही हो,देवी ने कहा ,हां भैया ,क्या करे कोई गृहस्थ चावल में कंकर डाल देता है तो उसे बीनना पड़ता है राजन ने कहा, बहन तुम कितनी भोली हो उस मूलयवान चीज को तुम कंकर कह रही हो ,तो देवी ने कहा महाराज आप जिसे मूलयवान चीज कह रहे  है वो तो असल में हमारे लिए तो केवल कंकर पत्थर ही है  यह कौतुक देख महाराज जी गदगद हो गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *