‘पिनाक’ किसके त्रिशूल का नाम था? जानिए

पिनाक भगवान शिव के धनुष का नाम हैं ।

परंतु कुछ कथाओं के अनुसार दो अलग तथ्य मिलते हैं । महाभारत शांति पर्व मोक्षधर्म पर्व अध्याय २८९ के अनुसार —

योगसिद्ध महामुनि उशना ने योगबल से धनाध्‍यक्ष कुबेर के भीतर प्रवेश करके उन्‍हें अपने काबू में कर लिया और उनके सारे धन का अपहरण कर लिया। धन का अपहरण हो जाने पर कुबेर को चैन नहीं पड़ा। वे कुपित और उद्विग्‍न होकर देवेश्‍वर महादेव जी के पास गये। उस समय उन्‍होंने अमिततेजस्‍वी अनेक रूपधारी सौम्‍य एवं शिवस्‍वरूप देवेश्‍वर रुद्र से इस प्रकार निवेदन किया। ‘प्रभो! महर्षि उशना योगबल से सम्‍पन्‍न हैं। उन्‍होंने अपनी शक्ति से मुझे बंदी बनाकर मेरा सारा धन हर लिया।

वे महान तपस्‍वी तो हैं ही, योगबल से मुझे अपने अधीन करके अपना काम बनाकर निकल गये’। राजन! यह सुनकर महायोगी महेश्‍वर कुपित हो गये और लाल आँखें किये हाथ में त्रिशुल लेकर खड़े हो गये। उस उत्‍तम अस्‍त्र को लेकर वे सहसा बोल उठे- ‘कहाँ है, कहाँ है वह उशना?’ महादेव जी क्‍या करना चाहते हैं, यह जानकर उशना उनसे दूर हो गये।

योगसिद्धात्‍मा उशना अपनी उग्र तपस्‍या द्वारा महात्‍मा महेश्‍वर का चिन्‍तन करके उनके त्रिशूल के अग्रभाग में दिखायी दिये। तप:सिद्ध शुक्राचार्य को उस रूप में पहचानकर देवेश्‍वर शिव ने उन्‍हें शूल पर स्थित जानकर अपने धनुषयुक्‍त हाथ से उस शूल को झुका दिया। जब अमित तेजस्‍वी शूल उनके हाथ से मुड़कर धनुष के रूप में परिणत हो गया, तब उग्र धनुर्धर भगवान शिव ने पाणि से आनत होने के कारण उस शूल को ‘पिनाक’ कहा।

महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४१ के अनुसार —

देवी पार्वती ने महादेव से बहुत से प्रश्न पूछे । जिसमे एक प्रश्न यह था कि उनके हाथ मे पिनाक धनुष क्यों होता हैं ? महादेव ने उत्तर देते हुए कहा —

युगान्तर में कण्व नाम से प्रसिद्ध एक महामुनि हो गये हैं। उन्होंने दिव्य तपस्या करनी आरम्भ की। प्रिये! उसके अनुसार घोर तपस्या करते हुए मुनि के मस्तक पर कालक्रम से बाँबी जम गयी। वह सब अपने मस्तक पर लिये-दिये वे पूर्ववत् तपश्चर्या में लगे रहे। मुनि की तपस्या से पूजित हुए ब्रह्मा जी उन्हें वर देने के लिये गये। वर देकर भगवान ब्रह्मा ने वहाँ एक बाँस देखा और उसके उपयोग के लिये कुछ विचार किया।

भामिनि! उस बाँस के द्वारा जगत का उपकार करने के उद्देश्य से कुछ सोचकर ब्रह्मा जी ने उस वेणु को हाथ में ले लिया और उसे धनुष के उपयोग में लगाया। लोक पितामह ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की और मेरी शक्ति जानकर उनके और मेरे लिये तत्काल दो धनुष बनाकर दिये। मेरे धनुष का नाम पिनाक हुआ और श्रीहरि के धनुष का नाम शारंग। उस वेणु के अवशेष भाग से एक तीसरा धनुष बनाया गया, जिसका नाम गाण्डीव हुआ।

यह तस्वीर ऐसे ही दी हैं । पिनाक वो धनुष नहीं हैं जिसके माध्यम से महादेव ने त्रिपुर का संहार था और न ही यह वह धनुष हैं जो सीता स्वंयवर मे टुटा था । वह शिव धनुष विश्वकर्मा ने बनाया था और पिनाक स्वंय ब्रह्मा ने ।

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