पितरों की प्रसन्नता, अनुकम्पा के लिए हमें दैनिक पूजन में क्या करना चाहिए? जानिए कुछ उपाय
मनुष्य लोक से ऊपर अनेक लोक है जैसे पितृ लोक सूर्य लोक स्वर्ग लोक इत्यादि आत्मा स्वयं के कर्मो के आधार पर उधर्वगामी होती है जितने अधिक पुण्य उतना ऊंचा लोक प्राप्त हो जाएगा ,
करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं, कभी कभी वो स्मरण न किये जाने से रूष्ट जो जाती है उनकी प्रसन्नता के लिये कुछ कार्य किये जा सकते हैं।
- दैनिक पूजा में मात्र एक दीपक पितृ के नाम का जला देना, अथवा नित्य कर्म में स्नान आदि के पश्चात पितरों को जल तर्पण आदि करना भी पितरों को प्रसन्न करता ही है।
- सूर्य को प्रतिदिन जल से अर्घ्य देने से भी, पितृ सन्तुष्ट रहते हैं, क्योंकि सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर, उसमें लाल फूल, लाल चन्दन का चूरा, रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देने से पितृ की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
- नियमित दुर्गा सप्तशती , श्रीमद्भागवत या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
परन्तु पितृ की प्रसन्नता, अनुकम्पा के लिए, दैनिक पूजा में कोई आवाहन, धूप- दीप, नैवेद्यादि की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए, प्रतिदिन के आवाहन, पूजन से उन्हें कष्ट होता होगा मेरा विचार यह है कि
- अमावस्या को किसी असहाय, भूखे को भोजन करा देने मात्र से वे प्रसन्न हो जाते हैं एवं इस सेवा भावना के कारण, अपनी अनुकम्पा अवश्य ही देते हैं।
- यदि सामर्थ्य हो तो उनके निमित्त किया गया दान, धर्म आदि के कार्य भी उनकी अनुकम्पा बनाए रखते है।
- माता -पिता ,वरिष्ठ सदस्यो का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितृ प्रसन्न रहते हैं।
हिन्दू धर्म में गौ कौए, कुत्ते, पिपीलिका इत्यादि को भोजन कराने से पूर्व, अग्नि को उसका कुछ भाग अर्पित किया जाता है जिसे अग्निहोत्र कर्म कहते हैं।
- हिंदू धर्म में भोजन आरंभ करने से पूर्व थाली में से 3 ग्रास निकालकर अलग रख देते हैं, फिर अंजुली में जल भरकर भोजन की थाली के आसपास दाएं से बाएं गोल घुमाकर अंगुली से जल को छोड़ दिया जाता है।
- इसका कारण ये है कि यह तीन ग्रास ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिए है।
- इसी प्रकार गौ, कौए और कुक्कुर के लिए भी रखा जाता है यही भोजन का एक मुख्य नियम है।
गौ का रहस्य
- प्रथम रोटी गौ के लिए ,गौ ही व्यक्ति को मृत्यु उपरांत के बाद वैतरणी नदी पार कराती है, गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है गौ को एक देवी के समान माना जाता है।
कौवे का रहस्य
- कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रय स्थल माना जाता है अतः भोजन में कुछ अंश पक्षियों को देने से पितृ अवश्य प्रसन्न होंगे।
कुक्कुर का रहस्य
- अंतिम रोटी कुक्कुर के लिए , शास्त्रों में कुक्कुर के विषय में बताया गया है कि यह यम के दूत होते हैं और ये यमदूत के आने पर आपको चेतावनी देते है, और इन्हें देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है ।
- अतः मान्यता है कि कुक्कुर को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं।
पिपीलिका का रहस्य
- पिपीलिका/ चींटी को आटा डालने की परंपरा प्राचीनकाल से ही विद्यमान है। चींटियों को शकर मिला आटा डालते रहने से व्यक्ति प्रत्येक बंधन से मुक्त हो जाता है।