पन्नाधाय”, एक ऐसी वीरांगना जिसने अपने कर्तव्य को निभाने के लिए अपने पुत्र का भी बलिदान दे दिया

मेवाड़ का इतिहास अपने त्याग, वीरता, पराक्रम और बलिदान के लिए जाना जाता है इस भूमि पर कई वीर, वीरांगनाओं ने जन्म लिया है तथा इस मिट्टी की रक्षा के लिए लाखों ने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं और इस धरा पर महाराणा प्रताप जैसे वीर और त्यागी राजाओं का जन्म हुआ है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के प्रण की खातिर अपने राज पाठ एवं महलों का त्याग कर दिया और जंगल में जाकर रहने लगे मेवाड़ के इतिहास में ऐसी ही एक वीरांगना भी हुई जिसने अपने कर्तव्य को सर्वोपरि मानकर उसके निर्वहन के लिए अपने पुत्र का भी बलिदान दे दिया इस वीरांगना का नाम था पन्नाधाय. पन्नाधाय त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा है पन्ना धाय के बलिदान से बड़ा बलिदान इस दुनिया में कुछ हो नहीं सकता.

पन्नाधाय कौन थी
सन 1527 में दिल्ली के बहादुर शाह के साथ युद्ध करते हुए मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह शहीद हो गए थे महारानी कर्णावती ने अपने जेष्ठ पुत्र विक्रमादित्य को राजगद्दी पर बिठाकर अपनी देखरेख में मेवाड़ का शासन चलाना शुरु किया

पन्नाधाय महाराणा संग्राम सिंह की पत्नी महारानी कर्णावती की दासी थी तथा महारानी को उनके राजनीतिक विषयों में सलाह भी देती थी तथा उनके पुत्रों राजकुमार विक्रमादित्य सिंह और छोटे बेटे उदय सिंह की देखभाल भी करती थी.

भारत के इतिहास का सबसे बड़ा गद्दार जिसने भारत को अंग्रेजों का गुलाम बनाने में मदद की

महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद मेवाड़ एक तरह से अनाथ हो गया. चारों तरफ से गिद्ध की तरह नजरें जमाए हुए दुश्मन अब हरकत करने लगे थे. महारानी कर्णावती को इस बात का भान हो चुका था |

राजकुमार विक्रमादित्य सिंह थोड़े गुस्सैल और हठी स्वभाव के थे जिसकी वजह से चित्तौड़ के शाही लोगों के बीच उनको लेकर एक असंतोष का भाव था सन 1535 में गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया राजकुमार विक्रमादित्य अपनी छोटी सी सेना की टोली लेकर उनसे मुकाबला करने के लिए गए किंतु उन्हें हताश होकर लौटना पड़ा और सिसोदिया वंश के शाही रक्षक राजकुमार विक्रमादित्य के के साथ युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. इस पर भी उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया और एक दिन राज दरबार में उन्होंने अपने सेनापति के साथ दुर्व्यवहार किया जिसकी वजह से उन्हें कारागार में डाल दिया गया.

तत्पश्चात शाही रक्षकों और सेना ने महारानी कर्णावती के सामने एक शर्त रखी कि वे राजकुमार विक्रमादित्य और राजकुमार उदय सिंह जी को बूंदी भेज दें और महारानी स्वयं इस युद्ध का नेतृत्व करें

महारानी कर्णावती इस बात से सहमत हो गई तथा उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को अपनी विश्वासपात्र दासी पन्नाधाय के हाथों सौंप दिया और उन्हें वहां से जाने का आदेश दे दिया महारानी की इस निर्णय से पन्नाधाय सहमत नहीं थी लेकिन महारानी के आदेश के आगे उन्होंने अपना शीश झुका लिया.

इसके बाद चित्तौड़ की सेना और बहादुर शाह के बीच भयंकर युद्ध हुआ लेकिन चित्तौड़ के सैनिकों की संख्या बहुत कम थी जिसके वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा और कहीं से भी मदद की आस ना होने पर महारानी कर्णावती ने 8 मार्च 1534 को महल में उपस्थित सभी औरतों के साथ जोहर किया तथा सभी पुरुष भगवा पहन कर युद्ध के मैदान में अपनी अंतिम सांस तक लड़े | अपनी विजय के बाद बहादुर शाह किले में पहुंचा और भयंकर मारकाट और लूटपाट मचाई. चित्तौड़ विजय के बाद बहादुर शाह हुमायूं से युद्ध में हार गया जिसकी खबर मिलते ही 7000 राजपूत सैनिकों ने पुनः चित्तौड़ दुर्ग पर आक्रमण करके उसे अपने कब्जे में कर लिया तथा विक्रमादित्य को पुनः गद्दी पर बैठा दिया.

बनवीर कौन था
ऐसा कहा जाता है कि बनवीर राणा संग्राम सिंह के भाई पृथ्वीराज सिंह तथा उनकी दासी का नाजायज पुत्र था और वह स्वयं को मेवाड़ का उत्तराधिकारी मानता था चूंकि राजकुमार विक्रमादित्य कारागार में थे और राजकुमार उदय सिंह की उम्र बहुत कम थी इस वजह से राज दरबार ने बनवीर को राजकुमार उदय सिंह का राज्य संरक्षक नियुक्त किया जोकि राज्य के साथ-साथ राजकुमार उदयसिंह की भी रक्षा करें लेकिन बनवीर ने राजकुमार विक्रमादित्य को कारागार में ही मरवा दिया तथा राजकुमार उदय सिंह को भी मारकर स्वयं राजा बनना चाहता था

पन्ना धाय का सबसे बड़ा बलिदान
पन्ना धाय का एक पुत्र था जिसका नाम चंदन था. वह भी राजकुमार उदय सिंह की उम्र का ही था दोनों ही साथ खेलते थे तथा पन्नाधाय अपने पुत्र चंदन के साथ-साथ राजकुमार उदय सिंह को भी स्तनपान करवाती थी इसी कारण पन्नाधाय को धाय माँ का दर्जा मिला |

जब बनवीर ने राजकुमार विक्रमादित्य को कारागार में मरवा दिया तब पन्नाधाय को अपने विश्वसनीय सूत्रों के द्वारा यह खबर पहले ही लग चुकी थी कि बनवीर राजकुमार उदय सिंह को भी मारने के लिए आ रहा है. पन्ना ने राजवंश के प्रति अपने कर्तव्य और महारानी कर्णावती को दिए हुए वचन को याद करके राजकुमार उदय सिंह को बचाने की युक्ति सोची. और उसने राजकुमार उदय सिंह को एक बांस की टोकरी में सुला कर उसे झूठी पत्तलों से ढक कर एक विश्वासपात्र सेवक के साथ महल के बाहर भिजवा दिया और बनवीर को धोखा देने के लिए अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया.

जब बनवीर खुन से सनी हुई तलवार लेकर उदय सिंह के कक्ष में पहुंचा और पन्नाधाय से उनके बारे में पूछा तो पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर इशारा कर दिया जिसके ऊपर उसका इकलौता पुत्र चंदन सोया हुआ था. बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदय सिंह समझ कर मार डाला. अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र के वध को विचलित रूप से देखती रही और बनवीर को यह बात पता ना लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई. बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूम कर राजकुमार उदय सिंह को सुरक्षित स्थान कुंभलगढ़ दुर्ग पर ले जाने के लिए निकल पड़ी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *