न्यूटन ने किस प्रकार गुरुत्वाकर्षण की खोज की और उनके द्वारा खोजे गए नियम कौन से थे?
गुरुत्वकर्शन के नियम न्यूटन ने खोजे. इससे पहले ईशा पूर्व चौथी शदी मे सिकंदर के गुरु अरस्तू ने पृथ्वी के गोल होने का प्रमाण खोजा था. अरस्तु ने चंद्र ग्रहण कि छाया गोल होने के प्रमाण को मानकर ही बताया था कि धरती गोल है. अगर धरती गोल नहि होती तो चंद्र ग्रहण मे उसकी छाया गोलाकार के बजाय फ्लैट, चोकोनी या आयताकर वरगाकर आदि आकृतियों मे होनी चाहिए थी. दूसरे भी कारण थे कि जैसे धरती पर समुद्र मे चलते हुए जहाज पहले दीखते है होरीज़ोंन पर.
अरस्तु के बाद पोलमी ने दूसरी शदी मे एक गलत नियम बताया जिसके अनुसार पृथ्वी मध्य मे है और सुर्य चंद्र तारे गृह सभी इसके इर्द गिर्द गोलाकार कक्षाओं मे घूमते है. पोलमी के अनुसार यूनिवर्स कि एक सिमित सीमा है. इसमें तारे अपनी स्थिर स्थिति मे है.
जॉन केप्लर नामक वैज्ञानिक ने भी कॉपीरनिकुश कि थ्योरी मे कुछ सुझाव दिए. इनके अनुसार गृह पूर्ण गोलाकार न घूमकर एलिप्टिकल कक्षा मे या नुकले गोलों कि कक्षा मे घूमते है.
महत्वपूर्ण खोज कि कॉपीरनिक्स ने जिसने बताया कि पृथ्वी गोल है, सुर्य सभी ग्रहों के केंद्र मे है और स्थिर है. सभी गृह सुर्य का चककर लगते है. इस चककर कि कक्षा एलिप्टिकल है न कि गोलाकार. कपरनिक्स एक धार्मिक व्यक्ति था और उसने अपनी थ्योरी को अधिक बल नहि दिया लेकिन बाद मे गलिलिओ ने इसे मज़बूती दि.
गलिलिओ ने इसे सिद्ध किया और कॉपीरनिकुश के सिद्धांत को सत्य है. गलिलिओ ने टेलीस्कोप भी बनाया और अकाश मे गृह पिंडोन का अध्ययन किया तथा अपने नियम बनाये. टेलीस्कोप से गलिलिओ ने देखा कि बृहस्पति के इर्द गिर्द वहुत से चन्द्रमा घूम रहे है. जिससे पता चला कि स्पेस मे हर पिंड पृथ्वी के इर्द गिर्द ही नहि घूमता है बल्कि इन पिंडो के अपने चंद्र भी है जो इन ग्रहो का चककर भी लगते है. गलिलो ने पोलमी कि थ्योरी को समाप्त कर दिया.
न्यूटन का गुरुतवाकर्शन का नियम : गलिलिओ के बाद आये इसाक न्यूटन. न्यूटन ने सन 1687 मे अपनी किताब फिलसफाई नेचुरलिस प्रिंसिपआ मैथमाटिका मे बताया. यह अब तक का भौतिक विज्ञानं विषय पर सबसे महत्वपूर्ण लेख था. इस किताब मे न्यूटन ने स्पेस और समय के बारे मे नई थ्योरी बनाई प्रतिपादित कि. इसके अनुसार स्पेस मे जो बॉडीज मूव करती है उनका नियम यह है कि उनमे आपसी आकर्षण बल होता है जिससे वह बंधी रहती है और यह बल उन भिन्न भिन्न पिंड के द्रव्यमान के समनुपाती होता है तथा उन पिंड के विच कि दुरी के वर्ग के विरोध अनुपाती होता है. अर्थात पिंड का द्रव्यमान अधिक होने पर बल अधिक लगता है और दुरी कम होने पर भी अधिक होता हे. जड़त्व नियम से कोई भी दौ पिंड अपनी ही उसी स्थिति मे बने रहते है जबतक की इन पर बल लगाकर उनको विस्थापित न किया जाय. क्रिया प्रतिक्रिया का नियम भी गुरुतवाकर्शन बल से ही जुडा हुआ है. हर क्रिया कि प्रतिक्रिया होती है और इस बल का मान उतना ही होता है जितना कि क्रिया मे बल लगता है. यह प्रतिक्रिया, क्रिया बल के विपरीत होती है.
इसका यह अर्थ भी है कि पृथ्वी हर वस्तु को या अन्य गृह भी अन्य पिंड को अपनी तरफ एक बल से आकर्षित करते है. इस बल को ही गुरुतवाकर्शन बल कहा गया. न्यूटन ने बताया है कि गुरुतवाकर्शन बल के कारण ही चन्द्रमा पृथ्वी के आसपास और पृथ्वी सुर्य आदि के इर्द गिर्द एलिप्टिकल कक्षाओं मे घूमते है. न्यूटन कि थ्योरी के अनुसार जितने भी पिंड अकाश, अंतरिक्ष या स्पेस मे है वे गतिहीन नहि है बल्कि गुरुतवाकर्षण नियम को मानते हुए गतिमान है. अकाश मे पिंफोन कि संख्या भी सिमित मानि गयी गिर इस पर शोध होते रहे. अब आजकल के वैज्ञानिक स्पेस यूनिवर्स को दौ थ्योरी मे समझाते है जो कि निम्न है
- आइंस्टेन कि अपनी थ्योरी of रिलेटिविटी. यह यूनिवर्स मे बढ़ी बॉडीज को गुरुतवाकर्शन बल द्वारा जोड़कर रखने और उनकी गति आदि को एक्सप्लेन करती है. इसकी गणनाये न्यूटन कि थ्योरी के अनुसार ही है तथा उनको सिद्ध करती है परन्तु न्यूटन कि थ्योरी साधारण है जबकि यह थ्योरी क्लिस्ट है.
- दूसरी क्वांटुम मेचेनिक्स कि थ्योरी भी. इसमें बहित छोटी छोटी स्केल पर गणना कि गयी है. इसमें एक इंच के लाखोंवे हिस्से के बारे मे गणनाये है. दोनो थ्योरी एक दुसरे को सत्य सिद्ध नहि करती है. अतः एक और नई थ्योरी कि जरूरत है जो क्वांटुम थ्योरी ऑफ़ ग्रेविटी हो और सब कुछ स्पष्ट करें.