नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन क्या है और यह किस उद्देश्य से शुरू किया गया है? जानिए
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत एक ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत भारत में मौजूद सभी हेल्थ प्रणालियों को आपस में जोड़ा जाएगा।
यह एक इंटर-आपरेटेबल प्लेटफॉर्म होगा। इसमें हेल्थ डेटा को फेडरेटेड डेटा स्टोरेज मॉडल के तहत स्टोर किया जाएगा।
मतलब यह हुआ कि इसमें हेल्थ डेटा को किसी केंद्रीय संस्था के पास स्टोर नहीं किया जाएगा। डेटा जहाँ है, वहीं रहेगा लेकिन जरूरत पड़ने पर उसको हेल्थकेयर एक्सपर्ट और पेशेंट के द्वारा इंटरनेट के माध्यम से आसानी से एक्सेस किया जा सकेगा।
इस मिशन के तहत एक ऐसा इंटीग्रेटेड डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की योजना है, जिसके माध्यम से विभिन्न हेल्थकेयर स्टेकहोल्डर्स के बीच मौजूद आपसी गैप को समाप्त किया जा सकेगा। इस हेल्थ इकोसिस्टम को नीचे के चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है।
अभी तक यह होता है कि जब हम डॉक्टर के पास जाते हैं तो अपनी पुरानी रिपोर्ट भी साथ में ले जाते हैं। लेकिन इस मिशन के क्रियान्वित होने के बाद हमको फिजिकल रूप में कोई रिपोर्ट साथ ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। डॉक्टर डिजिटल रिपोर्ट को आसानी से एक्सेस कर सकेंगे।
जैसे मान लीजिए मैंने लखनऊ में अपना इलाज करवाया और फायदा नहीं हुआ। इसके बाद मैं अपना इलाज करवाने दिल्ली आया। अब दिल्ली के हेल्थकेयर एक्सपर्ट इंटरनेट के माध्यम से आसानी से यह एक्सेस कर सकेंगे कि मुझे लखनऊ में डॉक्टर ने कौन सी दवा दी थी, कौन सी जाँच की और उसकी क्या रिपोर्ट थी इत्यादि।
6 केंद्र शासित प्रदेशों में इस मिशन को पायलट प्रोजेक्ट के तहत लॉन्च भी कर दिया गया है।
इसमें सभी भारतीयों को एक हेल्थ ID दी जाएगी। इस ID को बनवाने के लिए हमको अपना नाम, पता जैसी कुछ जरूरी जानकारियाँ देने के साथ ही आधार नंबर और मोबाइल नंबर देना पड़ेगा। ( भविष्य में अन्य ID भी माँगी जा सकती हैं -वोटर ID, ड्राइविंग लाइसेंस आदि)
भारत सरकार ने पिछले वर्ष नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट जारी किया था। यह मिशन इसी की अगली कड़ी है।
इस मिशन से एक फायदा यह भी होगा कि सरकार विशेषज्ञ डॉक्टरों को क्षेत्रवार प्रबंधित भी कर सकेगी। जैसे अभी किसी क्षेत्र विशेष में हृदय रोग विशेषज्ञ काफी मात्रा में हैं तो किसी क्षेत्र में हैं ही नहीं। अतः इस विशेषज्ञ विषमता को दूर किया जा सकेगा।
इस मिशन में हमारा डेटा माँगा जा रहा है। अतः प्राइवेसी की चिंता होना जायज है। इस डेटा के मैनेजमेंट से सम्बंधित पॉलिसी भी सरकार ने जारी की है।
हेल्थ डेटा एक संवेदनशील डेटा है। जैसे मान लीजिए किसी ने कुछ वर्ष पहले मानसिक रोग का इलाज करवाया हो या किसी अन्य घातक रोग का इलाज करवाया हो लेकिन वर्तमान में पूर्णतः स्वस्थ हो। अब अगर इस बात की जानकारी उसके वर्क प्लेस पर सभी को हो जाए तो एक संभावना तो यह भी बनती है कि अधिकांश लोग उससे दूरी बना लेंगे। जो गलत है।
अभी हाल ही में इजराइल ने अपने नागरिकों का कुछ डेटा Pfizer के साथ साझा किया है।
यदि भविष्य में भारत भी हमारा डेटा ऐसे किसी प्राइवेट प्लेयर के साथ साझा कर दे तो क्या यह उचित होगा????
हालाँकि इस मिशन में सरकार ने अपनी डेटा प्रबंधन नीति में बोला है कि नागरिकों की सहमति के बिना उसका डेटा कोई भी एक्सेस नहीं कर पाएगा।
भविष्य में डेटा प्रबंधन भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी। कारण यह है कि सभी बड़ी डिजिटल कंपनियों का सर्वर तो भारत के बाहर ही है।