दैत्य, दानव, राक्षस और असुर में क्या अंतर है? जानिए

श्रीमद भागवद्पुराण के अनुसार श्रस्टी के आदि मे सर्वप्रथम ब्रह्म पैदा हुए जिनसे एक स्त्री पुरुष का जोड़ा युवावस्था मे उतपन्न हुआ. पुरुष को स्वयंभावु मनु तथा स्त्री को सतरूपा कहा गया. इनसे ही श्रस्टी मैथुनी हुयी और यही आदि पुरुष माने गए. स्वयंभावु मनु सतरूपा से दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद तथा आकुति देवहती और प्रसूति तीन पुत्रियां हुयी.

ब्रह्मा जी के शरीर के भिन्न भागो से अनेक पुत्र पैदा हुए जिनमे मनु सतरूपा से अलग मारीच अत्रि अंगिरा पुलह पुलस्त्य क्रतु दक्ष, रूद्र भृगु वशिष्ठ कर्दम अथरवा रूचि धर्म नारद आदि हुए.

इन ब्रह्म पूतरो ने स्वयंभवु मनु क़ी पुत्रियों से विवाह किया. ब्रह्म पुत्र मारीचि के उसकी स्त्री कला से कश्यप और पूर्णिमा नामक पुत्र हुए. कश्यप का विवाह दक्ष प्रजापति ब्राह्मपुत्र क़ी तेरह कन्याओं से हुआ जिनमे दिति, अदिति, दनु, कष्ठा, अरिस्टा सुरसा इला मुनि करोधवषा ताम्रा सुरमा सुरभि और तिमि शामिल है.

ये कश्यप ऋषि और यह तेरह दक्ष प्रजापति क़ी कन्यायें ही अधिकतर श्रस्टी के जनक है. इनसे ही

कश्यप और मुनि से अप्सरा

कश्यप और सुरसा से राक्षस

कश्यप और अरिष्टा से गंदर्भ

कश्यप और दनु से बलशाली 61 दानव पुत्र हुए. यह शैव परम्परा को मानते थे. अस्त्र शस्त्र के अविष्करक और निर्माता थे. त्रिपुराधीपति दानवराज मय बडे ज्ञानी और शिल्प कला के ज्ञाता थे. मायाव कला /विद्या के ज्ञाता थे. मय क़ी. पत्नी हेमा का अपहरण इंद्र ने किया . रावण ने मय क़ी मदद क़ी. रावण राक्षस था. रावन्ने रक्ष संस्कृति विकसित क़ी अर्थात जो रक्षा करें वह राक्षस.

यक्ष संस्कृति के पोषक कुबेर थे जो रावण के सौतेले बडे भाई थे. यक्ष जो लॉग भोग विलास मे अधिक विश्वास रखें यक्ष है. जो तप सुर संयम मे विश्वास रखें वक्ष संस्कृति के पोषक राक्षस है. कुबेर के पिता और रावण के पिता ऋषि विशर्वा थे. माता अलग थी.

कश्यप और दिति से दैत्य जिनमे दैत्यराज हरिण्यकश्यप और हरिन्याक्ष शामिल है. इनके अलावा 49 पुत्र और भी थे जो ब्रह्मचारी रहे और मरूंदड कहे गए. सभी निःसंतान थे. हरिण्यकश्यप को उसकी स्त्री जाम्भोजी क़ी पुत्री दानवी से चार पुत्र और एक पुत्री हियी. प्रहलाद भी इसका ही पुत्र था. प्रहलाद के विरोचन, विरोचन के राजा बलि हिये. राजा बलि से ही विष्णु ने बोन का रूप धरकर छल कोयन और तीन पग भूमि मांग लि. बलि को पाताल लोक का राज दिया गया. वह प्रजापलक और बडे सांयमि ज्ञानी रजा हुए.

कश्यप और अदिति से आदित्य आदि हिये.

कश्यप और दनु के पुत्र वैश्वनर के उपदानवि, हायशिरा, पुलोमा और कालका चार पुत्रियों से दैत्य हिरण्याक्ष, क्रतु, तथा पुलोमा और कालका से कशयप ऋषि ने विवाह किया. यह कश्यप ही इन लड़क़ीयों के पिता का पिता था. पुलोमा से बलशाली पुलोमी और कालका से कालकेय दानव पैदा हुए. इनको निवातकवच भी कहा गया है.

अतः दैत्य दानव राक्षस और असुर क़ी उत्पत्ति मे अंतर है. सबके माता अलग अलग है. असुर, दानव, दैत्य आदि सभी एक दूसरे के सहयोगी थे और सुर या आदित्यों या देवों के गजर विरोधी थे. इनका संघर्ष एक दूसरे पर अधिपत्य हेतु लगातार चलता रहता था.

असुर शब्द का अर्थ है प्राण वाला अथवा शक्तिवान. असुर सुर के धुर विरोधी थे. रामायण काल तथाहाभारत काल मे भी असुरों का वर्णन है. पूतना, गाढ़ासूर, आदि कृष्णकाल मे असुर थे और कंस के सेवक थे. इसी तरह भीम ने भी कई असुरो का वध किया था जो अधिकतर नरभक्षी थे और घने जंगलों मे निवास करते थे. ईरान को असुरो का राज्य माना जाता है. परसियों के देवता अहुर्मज़ड को मेधाई असुर कहा जाता है. धीरे धीरे असुर देवों के विरोधी हो गए राज्य और सीमा विस्तार को लेकर. ईरान मे शाशन से पूर्व असुरों नर भारत मे राज्य किया. फिर सुरों ने देवो ने इन्हे यहां से भगाया. कालयवन भी अरब ईरान क्षेत्र का ही बादशाह था. देत्यो असुरो के गुरु शुक्राचार्य थे जबकि देवताओं या सुरों के गुरु बृहस्पति थे.

असुर शब्द का प्रयोग ऋग्वेद मे भी हुआ है. वेदों मे असुरों को ही दैत्य कहा गया है. दानव और राक्षस अलग थे जैसा क़ी ऊपर वर्णित है ही.

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