देवभूमि उत्तराखंड की सोलहवीं शताब्दी की एक वीरांगना उम्र जानकर आप भी करोगे नमन
देवताओं की देवभूमि हमारा प्यारा उत्तराखंड जिसके आज दो मण्डल हैं कुमाऊँ और गढ़वाल कई देवी देवताओं के निवास के साथ साथ कई असाधारण हस्तियों की भी जन्मभूमि है।
आज के लेख में मैं एक ऐसी वीरांगना की लघु कथा लिखने को जा रहा हूँ जो गुराड़ गाँव के उस समय यानि सोलहवीं शताब्दी के थोकदार साहब की लाड़ली बेटी थी ।
उसकी दो सहेलियाँ थीं। जिनका नाम देवकी व बेलू।
वो बचपन से ही अपनी इन दोनों सहेलियों के साथ हमेशा बहादुरी के खेल खेला करती थीं।
कुश्ती, घुड़सवारी और तलवार चलाने को उसको छोटी सी उम्र में काफी अच्छा अनुभव हो गया था।
उन्हीं दिनों उनके उस इलाके में बाहरी शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया था। उनके सैनिक ने वीरतापूर्वक युद्ध किया परन्तु अपने इलाके की रक्षा हेतु लड़ते लड़ते वे वीरगति को प्राप्त हो गये।
उस वीरांगना के पिता भूप सिंह और दो भाई भगतू और पत्वा भी युद्ध करते हुए शहीद हो गये थे।
वह बहुत ही स्वाभिमानी बालिका थीं, उसके पिताजी और दोनों भाइयों के बलिदान हो जाने के बाद भी उसने शत्रुओं के सामने घुटने नहीं टेके , उसने पुरूष वेश धारण किया और अपनी बची खुची और बिखरी सेना को पुनः एकत्र किया और फिर से शत्रुओं को युद्ध के लिए ललकारने के लिए निकल पड़ी उस समय वो मात्र पन्द्रह वर्ष की थीं।
इतनी छोटी सी उम्र में भी वो लगातार सात वर्ष तक अपने शत्रुओं से लड़ते रही थीं।
आखिरकार उस वीरांगना ने अपने दुश्मनों को अपने इलाके से बाहर खदेड़कर ही दम लिया ।
अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के उपरांत जब वो एक दिन अपने गाँव की ओर वापस लौट रही थीं तो एक वो एक एकान्त स्थान पर नदी में स्नान करने उतरी, तभी उनके एक शत्रु सैनिक ने उनको नदी में स्नान करते देख लिया और चुपके से उस वीरांगना के पीछे से पीठ में तलवार से वार कर धोखे से मार डाला था।
आज भी उत्तराखंड के इतिहास में इस वीरांगना को तीलू रौतेली तिलोत्तमा देवी के नाम से जाना जाता है।
इनके जन्म के बारे में सही सही जानकारी नहीं होने के बावजूद भी हमारे उत्तराखंड के गढ़वाल मण्डल में इनकी जयंती 8 अगस्त को हर वर्ष मनायी जाती है। ऐसी वीरांगना को हमारा कोटिशः नमन है।