देवताओं और दानवों के सर्वोच्च गुरु कौन थे?

एक बार देवताओं ने इन्द को असुरों (दैत्यों और दानवों) नें विरोचन को अपने समुदाय का सर्वश्रेष्ठ योग्य व्यक्ति मानकर प्रजापति के पास आत्मज्ञान की शिक्षा प्राप्त करनें हैतु भेजा।

विरोचन मात्र 32 वर्ष में प्रथम उपदेश सुनकर ही सन्तुष्ट हो लोट गये और असुरों में देहात्मवाद का प्रचार किया। इसकारण असुर मृत देह को सुरक्षित रखनें लगे।

जबकि इन्द्र ने कुल एक सौ एक वर्ष तप करते हुए अध्ययन किया। इसबीच 96 वर्ष में बत्तीस बत्तीस वर्ष के अन्तराल से तीन बार के उपदेशों से इन्द्र को सन्तोष नही हुआ। अन्त में पाँच वर्ष और तप करनें के उपरान्त 101 वर्ष तपकरने पर प्रजापति के उपदेश से इन्द्र को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ।

यह आख्यान छान्दोग्योपनिषद में पढ़ सकते हैं। देवगुरु बृहस्पति और शुक्राचार्य

सर्वप्रथम देवाचार्य और देवपुरोहित त्वष्टा थे। फिर त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप देवताओं के आचार्य और पुरोहित रह चुके हैं। किन्तु चुपके से असुरों के हित में कार्य करनें के आरोप में देवराज इन्द्र नें उन्हें मृत्युदण्ड दे दिया। विरोध स्वरूप त्वष्टा नें वृत्रासुर को प्रशिक्षित कर इन्द्र के विरुद्ध असुरेश्वर के रूप में खड़ा किया। किन्तु इन्द्र ने महर्षि दधीचि के आत्म बलिदानी सहयोग से वृत्रासुर को भी युद्ध में मारडाला।

तदुपरान्त महर्षि अङ्गिरा के पुत्र बृहस्पति और महर्षि अङ्गिरा के शिष्य शुक्राचार्य को देवताओं नें अलग अलग समय पर आचार्य और पुरोहित नियुक्त किया। किन्तु सबसे अन्त में देवगुरु बृहस्पति और असुरों के गुरु शुक्राचार्य हुए।

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