दीपावली पर पटाखे चलाने का क्या इतिहास है ? जानिए
90 के दशक में बच्चों की दिवाली धूम-धड़ाके वाली ही होती थी. आज भी आपको वो दिन याद आते होंगे जब मम्मी-पापा तो घर की सफाई और पूजा के सामान की चिंता में घुले जाते थे. लेकिन आपको दिन रात बस दिवाली में अपने पटाखों की चिंता रहती है. शाम को बाजार जाना और आलू बम, चरखी, अनार, लड़ी बम, एटम बम, रॉकेट जैसे जाने कितने पटाखे खरीद लाते।
दिवाली की रात का इंतजार कौन करे। बच्चों की दिवाली तो दो-तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाती थी। वो एटम बम को टूटे-फूटे टीन के डब्बों के नीचे रखकर जलाना बम फूटने पर उस डब्बे को हवा में उड़ते देखना हाथ में रखकर अनार जलाना और दोस्तों के सामने हेकड़ी झाड़ना 100 बमों की लड़ी को मटके में रखकर जलाना और फिर उसकी आवाज का पूरे मुहल्ले तक में गूंजना रॉकेट जलाना, जो कभी कभी पड़ोसी के घर में घुस जाया करती थी।
याद ही होगा न ये सब सभी लोगों को? इन पंक्तियों को पढ़कर आपके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान भी आ गई होगी क्योंकि कमोबेश 90 के दशक के हर बच्चे का यही बचपन रहा होगा।सबने ऐसे ही दिवाली मनाई होगी थोड़ी कम या थोड़ी ज्यादा।
लेकिन फिर भी क्या प्रदूषण कम करने नाम पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाना क्या उचित है? मैं इस बात से असहमत हूं।
लेकिन वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य की चिंता को एक धार्मिक रंग दे देना अपने आप में गलत भी है।
पटाखों का इतिहास
पटाखे जलाना भारत की परंपरा नहीं है! पटाखों का आविष्कार सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था. इसके बाद तक 1200 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक ये पूरे विश्व में फ़ैल गया। दिवाली में पटाखे जलाने की परंपरा तो बहुत बाद में शुरू हुई है।
दीपों का त्योहार दीपावली
दीपावली का मतलब होता है दीपों की लड़ी जो घी या तेल से जलाई जाती है। इसका मतलब बारुद भरे पटाखे बिल्कुल नहीं होता। ये रौशनी का पर्व है शोर, धमाके और धुंए का पर्व बिल्कुल भी नहीं है।
ऐसा माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों ने पूरे मार्ग को दिए जलाकर रौशन कर दिया था। ये दिए अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक के रूप में जलाए गए थे। अंधेरे पर उजाले की जीत के रूप में जलाए गए थे।
इसके अलावा भी देश में दिवाली मनाने के कई मान्यताएं प्रचलित हैं-
1- महाभारत के अनुसार पांडवों के 12 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास से लौटने का प्रतीक है दिवाली।
2- असुर और देवों के बीच समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी के रूप में दिवाली मनाई जाती है। इसके पांच दिन बाद देवी लक्ष्मी की भगवान विष्णु से शादी का जश्न मनाया जाता है। इसके साथ ही भगवान गणेश, मां सरस्वती और कुबेर की भी पूजा की जाती है ताकि घर में सुख, समृद्धि, संकटों से मुक्ति और ज्ञान की वर्षा हो।
3- पूर्वी भारत खासकर बंगाल, ओडीसा और असम में दिवाली, काली पूजा के रुप में मनाई जाती है।
4- मथुरा में दिवाली भगवान कृष्ण को याद कर मनाई जाती है।
5- दक्षिण भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में भगवान कृष्ण द्वारा नारकासुर के वध के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है।
मेरे ज्ञान अनुसार दीवाली पर पटाखे और आतिशबाज़ी का कोई पौराणिक स्रोत तो अब तक नहीं मिला है भले ही लोगों ने अपनी खुशी जाहिर करने का एक अलग तरीका ढूंढ लिया होगा पर समय के साथ साथ स्वास्थ्य चिंताओं को देखते हुए पटाखे छोड़ना बंद करना होगा अगर ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम धुएं वाले ग्रीन पटाखे पर जोर देना होगा।