दादी और दादा की प्यार भरी बातो की कहानी
दादी ने आंगन में बैठकर अखबार हाथ में लिए धूप सेकते दादू से कहा अरे आज फिर चाय ठंडी कर दी इतनी देर से अखबार में नजरें गाड़ कर क्या पढ़ रहे हो।मन ही मन मुस्कुराते भी जा रहे हो कुछ नहीं आज प्रपोज डे है ना अखबार में कुछ लोगों की प्रेम कहानियां छपी है बस वही देख रहा था दादू ने अखबार से नजरें हटाए बिना जवाब दिया। अच्छा मगर यह प्रपोज डे क्या होता है दादी ने हैरत से पूछा ।
अरे बावली हमारे जमाने में यह सब नहीं था जब हमारी शादी हुई तो हमारी उम्र ही क्या थी याद है ना तुम्हें उस समय शायद तुम्हारी 8 साल और मेरी 14 साल उम्र रही होगी तब काहे का रोज डे प्रपोज डे और वैलेंटाइन डे दादू ने अखबार को एक तरफ रखते हुए कहा सही कहा हमारी जिंदगी तो यूं ही गुजर गई आजकल के बच्चों के बड़े जो चले हैं कभी-कभी सोचती हूं काश हम भी इस जमाने में पैदा हुए होते दादी ने थोड़े निराश भरे स्वर में कहा क्यों हमारा जमाना क्या बुरा था तुम्हें याद नहीं मैं कई बार मां और घर में बाकी सभी से छुपाकर बाड़े से गुलाब का फूल तोड़ कर तुम्हारी लंबी चोटी में लगा दिया करता था क्या रोज डे नहीं होता था दादी मुंह पर अपना आंचल खींचकर अचानक रोज डे तो ठीक है मगर तुमने मुझे प्रपोज किया दादी ने पूछा सोचता हूं क्या कर दादू आंखें बंद करके आराम दिया दो-तीन मनट के बाद आंखें खोली और अरे हां अभी आया जब तुम 16 बरस की हो गई या तो नहीं ठीक से लेकिन जब तुम भी कुछ कुछ समझदार हो गई थी।
दादी शरमा कर बोली हां मैं उस दिन खुद को आईने में निहार रही थी और तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था क्या तुम इस प्रेम का मतलब समझती हो।और तुम शर्मा कर गाल लाल किए मेरे करीब आ गई थी तो पगली क्या वह प्रपोज डे नहीं था दादू बोले दादी बोली और मैं जो हर दिन आपके लिए सज संवर कर इंतजार किया करती थी क्या यह वैलेंटाइन डे से कम था वैलेंटाइन नहीं पगली वैलेंटाइन और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े दादू उनसे नजरें मिली और दादी के गाल पर गुलाब की तरह सुर्ख से हो चले।