तकदीर का बादशाह धनकुमार कहानी

भारत में स्थित प्रतिष्ठानपुर बंदरगाह बहुत ही प्रख्यात था। प्रतिष्ठानपुर के राजा भी न्याय प्रिय एवं प्रजावत्सल थे, जिनका नाम था, जिनशत्रु। प्रतिष्ठानपुर में एक श्रेष्ठी रहते थे। नाम था उनका धनसार। इनके चार पुत्र थे। सबसे छोटा धन्यकुमार था। बडे तीनों भाईओं को धन्यकुमार बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।

ये तीनों हर घडी हर पल उसका दोष देखने में ही मग्न रहते थे। फिर भी धनकुमार विचलित नहीं हुआ वह एकदम स्वस्थ रहा। धन्यकुमार को जिनेश्वर परमात्मा पर अपार श्रद्धा थी जो भी काम अच्छी तरह से पूरा होता तो वो सोचता देव, गुरु, धरम की कृपा और अगर कोई काम बिगड़ जाता तो अपने ही तकदीर को कोसता था। वह कभी किसी को बुरा नहीं बोलता, बुरा नहीं सोचता न ही किसी का बुरा करता था। धनसार श्रेष्ठी का समावेश नगर के प्रतिष्ठित श्रेष्ठियों में होता था।

उनके लिए तो चारों पुत्र एक समान जिगर के टुकडे जैसे थे। बडे़ तीनों पुत्रों की हरकत उनसे छिपी नहीं थी, परंतु सोचते कि अगर चारों हिलमिल कर रहे तो सबके लिए अच्छा होगा। धन्यकुमार को किसी की परवाह नहीं थी। वह मस्त मौला अपनी ही मस्ती में जीता था। बन सके तो किसी को सहयोग करना नहीं तो फिर दूर ही रहना। मानो सच्चा जीवन जीता था। परमात्मा में रमण, परमात्मा का स्मरण करना और मस्ती में जीवन व्यतीत करना। समय ऐसे ही चलता रहता है, वह किसी के लिए नहीं रुकता धन्यकुमार भी अपना जीवन ऐसे ही गुजारता चला जा रहा था। एक दिन प्रतिष्ठानपुर के बंदरगाह में एक जहाज आकर रुका।

अनेक व्यापारी उसमें से उतरे। उसमें लाखों का माल भरा हुआ था। व्यापारियोद ने प्रतिष्ठानपुर के राजा से कहा इस जहाज का मालिक मर चुका है। यह माल हमारा नहीं है, आप इस माल को जो चाहो वो कर सकते हो। महाराज ने व्यापारिओं की ईमानदारी की प्रशंसा करते हुए कहा जिसका कोई मालिक नहीं होता उसका मालिक राजा होता है। इस माल को निलाम कर दो और जो धनराशी आए उसे राजकोश में जमा करवा दो।

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