जानिए हाल ही में रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू-कश्मीर से बाहर निकाले जाने की खबरें आ रही हैं, क्या ये सच है?

अगर गलत है तो सही होना चाहिए और सरकार को सही करना चाहिए. हमारी धरती है भारतियों कि है चोर लुटेरों के लिए नहीं है. अगर वहादुर थे तो अपनी धरती के लिए लड़ते अड़तें और डटते. डरपोक कायर हमारे हिस्से मैं मुह मार रहे है और आंख दिखा रहे है.

किस लिए caa और nrc बनाया है उसका क्या उपयोग है अगर रोहिंग्या ही भारत का नागरिक है तो भारतीय क्या करें क्या बर्मा के नागरिक बन जाये या रोहिंफया कि बदसलूकी का इंतज़ार करें. संसद अपने बनाये नियम लागु करें तथा देश को अवैध अतिक्रमणकारीयों से मुक्त कराये. ये भारत खाला का घर नहीं है जिस का मन आया घुस गया और जम कर बैठ गया. अपनीदेश मैं रहो अपना अधिकार मांगो जैसे यहां उपद्रव करते हो वही करो और लोकतंत्र स्थापित कर अपना अधिकार लौ. गोली खाने से फटती है यहां हल्ला करने चले आये.

जो दोगले इनके समर्थन कर रहे है और मानवीयता दिखाकर मानव बन रहे है उनके मुह से एक शब्द कश्मीरी पंडितों के पलायन के चालीस साल होने पर भी नहीं निकला. क्यों क्या कश्मीरी पंडित भारतीय नहीं है उनका पलायन अमानवीय नहीं था या हिंदू होने से मानवीयता तेल लेने चली गयी. फारुख हो या उमर या मुफ़्ती सब इनके लाइट क्यों रोते है पंडितों के लिए क्यों नहीं. कश्मीर जम्मू मैं ही रोहिंग्या क्यों ज्यादा तादाद मैं बसे या मेवात ही इनका गढ़ क्यों बना. अपराध तो कहि भी करते है. क्यों कर पाते है. सोचनीय है इनको एक बृहद योजना के अंतर्गत भारत मैं क्षद्म धर्म निरपेक्ष शक्तियों ने बसाया है. इन पर जाँच हो और बाहर फेंका जाय. बंगाल मैं भी रोहिंग्या आवादी बहुत हो सकती है लेकिन जिहादिन वहां पर पता ही चलबे देगी. सबका साथ सबका विकास का अर्थ रोहिंग्या का विकास नहीं है रोहिंग्या देश पर बोझ है. उससे देश को मुक्त करो.

अगर ये मानवीयता है तो बंगलादेश पाकिस्तान क्यों इसमें पीछे है मानवीय बने अपने धर्म के लोगो क़ीमदद करें. अरब मुल्क आगे आये बर्मा पर दबाब डालकर इनका मसला हल करवाए. मानवीय आयोग है uno मैं प्रशांत भूषण आज़म खान वहां पर इनको राहत दिलवाये. धर्म भाईचारा सब निभाए या भारत को ही इनकी सराय बनाकर छोड़ देंगे. फिर तो भारतवासी भी एक दिन घर से बाहर होंगे और यह बढ़ा खतरा हमेशा सिर पर खड़ा रहेगा.

फारुख अब्दुल्ला का ट्वीट रोहिंग्यायों पर पढ़े कि कैसे दिल से दुखी है. कभी इतने संजीदा कश्मीरी पंडितों के लिए होते तो घाटी हिन्दुमुक्त नहीं होती और फारुख साहेब भाईचारे कि मिशाल होते. होने ही शाशनकालमे घाटी से पंडितों को भगवाकर अब मानवीय बनने चले है. इतना दोगलापन लेट कहा से है.

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