जानिए सूत पुत्र और शुद्र पुत्र में क्या अन्तर है?

इसका स्पष्‍ट मतलब यह है कि जन्म से प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ही है। ”जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात द्विज उच्यते।’ शूद्र नाम से कोई जाति नहीं और ना ही कोई वर्ण है।जो खुद को शूद्र समझते हैं यह बात उनके दिमाग में सैकड़ों वर्षों में बैठाई गई है। बार बार किसी झूठ को दोहराने से वह सत्य लगने लगता है और समाज उसे ही सत्य मानता रहता है।

अब बात करते हैं सूत शब्द की। यह सूत शब्द क्षुद्र और शूद्र से भिन्न है। प्राचीन काल में हर देश के लोग अपने समाज में ही विवाह करते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि समाज में किसी अन्य समाज का रक्त मिले। यह आज भी होता है।

गौरवर्ण के यूरोपीय लोग नहीं चाहते हैं कि उनके लोग अफ्रीकी लोगों से विवाह करें। ऐसे लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। आज भी यहूदी और परसी दूसरे समाज के लोगों से विवाह करने को बुरा मानते हैं। यह भावना किसी धर्म से नहीं आती है यह सामाजिक भावना है। इसी तरह की भावना भारत में भी थी। कहते हैं कि जो लोग अंतरजातीय विवाह कर लेते थे उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता था। ऐसे लोगों का ही एक अलग समाज बन जाता था। इन्हीं समाज के लोगों को अलग अलग काल में अलग नामों से पुकारा जाने लगा।

हालांकि राजा लोग इस मामले में अपवाद थे। मतलब यह कि जिसके पास शक्ति है उसके सभी तरह के अपराध क्षम्य होते थे। यह भी कि उसके उस पुत्र को राज्य का अधिकार नहीं मिलता था जिसकी माता किसी अन्य समाज से हो।

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