जानिए भीष्म पितामह को बाणों की शैया क्यों मिली थी ?

जब भगवान कृष्ण पांडवों के साथ उनसे मिलने आते हैं। तो वे उनसे पूछते हैं कि उन्हें अपने पूर्व के दस जन्म याद हैं और उन्हें कोई पाप नजर नहीं आता, जिससे उन्हें यह असहनीय पीड़ा मिल सके। यह उनका कौन सा पाप है। जो उन्हें बाणों की शैया पर सोना पड़ रहा है।

कृष्ण भगवान ने कहा कि आपको केवल अपने दस जन्म याद हैं। लेकिन उसके पूर्व के जन्म में आप राजकुमार थे और आखेट के लिए वन में गए थे। उस वन में आपने एक करकैंटा को अपने भाले से निशाना बनाया था और वह करकैंटा कांटो की शैया पर गिर गया था।

करकैंटा जितना निकलने की कोशिश करता, उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकैंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूं, ठीक इसी प्रकार राजकुमार को भी मृत्यु प्राप्त हो। उसने कांटों पर पड़े पड़े अपना दम तोड़ दिया था।

यह पाप आपका फलित नहीं हो पाया क्योंकि आपने पिछले दस जन्म में कोई पाप नहीं किया और सभी जन्मों में पुण्य करते रहे। परंतु इस जन्म में जब आपने हस्तिनापुर का रक्षण करने का प्रण लिया और हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठने वाले अधर्मी और कुमति दुर्योधन का साथ दिया तो आपने पहला पाप किया।

दूसरा पाप आपने तब किया जब आपकी कुलवधू का चीर हरण हुआ। आपने विरोध भी नहीं किया।अगर आप चाहते तो यह चीरहरण रोका जा सकता था यह आपका दूसरा पाप था। इस जन्म के पापों के कारण आपके पुराने जन्म का वह पाप भी फलित हो गया और आप को दंड के रूप में बाणों की शैया मिली।

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