जानिए जामुन की लकड़ी की विशेषता 99 % लोग नहीं जानते

जामुन की लकड़ी का महत्त्व

अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती और पानी सड़ता नहीं । टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता ।

जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ती नही है।जामुन की इस खूबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़े पैमाने पर होता है।नाव की निचली सतह जो हमेशा पानी में रहती है वह जामुन की लकड़ी की होती है।

गांव देहात में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। आजकल लोग जामुन का उपयोग घर बनाने में भी करने लगे है।

जामुन के छाल का उपयोग श्वसन, गलादर्द ,रक्तशुद्धि और अल्सर में किया जाता है।

दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है । 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी जो 700 साल बाद भी नहीं गली है। बावड़ी की सफाई करते समय बारीक से बारीक बातों का भी खयाल रखा गया। यहाँ तक कि सफाई के लिए पानी निकालते समय इस बात का खास खयाल रखा गया कि इसकी एक भी मछली न मरे। इस बावड़ी में 10 किलो से अधिक वजनी मछलियाँ भी मौजूद हैं।

इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध है। इतना कि इसके संरक्षण के कार्य से जुड़े रतीश नंदा का कहना है कि इन सोतों का पानी आज भी इतना शुद्ध है कि इसे आप सीधे पी सकते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पेट के कई रोगों में यह पानी फायदा करता है।

जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है।

जलसुंघा ( ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जो भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते है ) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं।

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