जानिए कृष्ण भक्तों को कष्ट क्यों होता है?

कलियुग में ऐसा कोई नहीं जिनके जीवन मे कष्ट व समस्या का आगमन न हो। जीवन की आधी ग्लास सुख से भरी है और आधी ग्लास खाली सुख से वंचित (दुःख से भरी) है।

भगवान श्रीकृष्ण सबसे बड़े कर्मयोगी व कर्मयोग के शिक्षक हैं। अर्जुन को भी उन्होंने कहा अपना युद्ध स्वयं लड़ो। मैं केवल उसकी सहायता करता हूँ जो स्वयं की मदद खुद करता है।

यदि श्रीमद्भागवत गीता के एक अध्याय का पाठ नित्य नहीं कर रहा है कृष्ण भक्त, तभी उसके मन में मोह है व गलत धारणा है कि कृष्ण भक्त के जीवन मे कष्ट क्यों होता है? यह बताओ श्रीमद्भागवत गीता यदि कृष्णभक्त ही न पढ़ेगा तो मोह से छूटेगा कैसे?

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥

सकल पदारथ हैं जग मांही। कर्महीन नर पावत नाहीं ॥

भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को भोजन जरूर देता है, लेकिन होम डिलीवरी नहीं करता। चिड़िया हो या शेर या हिरण या मनुष्य प्रत्येक को भोजन हेतु कर्म करना पड़ेगा।

माता चिकित्सक हो तो भी बिना पढ़े बच्चे को चिकित्सक नहीं बना सकती। वह चिकित्सक बनने में सहायता कर सकती है। लेकिन बच्चा यह कहे माँ तुम्हारे चिकित्सक होने का क्या फायदा, यदि मुझे जब पढंकर ही पास होना होगा, तो यह मूर्खता ही कही जाएगी।

सांसारिक मर्यादा को कृष्ण भक्त हो या गायत्री भक्त हो या हनुमान भक्त हो या कोई अन्य धर्म का हो, सबको संसार के नियम का पालन करना पड़ेगा और स्वयं की योग्यता व पात्रता बढ़ानी होगी। अपने हिस्से का कर्म करना पड़ेगा। योग्यता पात्रता बढाने हेतु प्रयत्नशील होना होगा।

वर्षा सबके लिए समान होती है, पर जिसके पास घर नहीं उसे कष्ट होता है। समस्या वर्षा नहीं है अपितु बेघर होना है। इसी तरह कष्ट सबके जीवन मे आते हैं, उसे हैंडल करने की योग्यता व क्षमता अनुसार किसी के लिए कष्ट बड़ा और किसी के लिए छोटा होता है।

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