जानिए कर्नाटक के शिवकाशी नदी में शिवलिंग क्यों पाए जाते है।

उथले पानी के बीच शिवलिंग और मूर्तियां दिख रही है जिनको देखने से ये लगता है कि ये प्राचीन काल कि कला है, परन्तु जिस मेसेज के साथ इसे शेयर किया जा रहा है वो ठीक नहीं है अगर ऐसे मेसेज करने वाले भगवान शंकर जी को मिले तो उनकी तीसरी आंख खुलने में देर नहीं लगेगी। इन्हे सहस्त्र लिंग कहा जाता है।

कर्नाटक के सिरसी से 14 किलोमीटर दूर यह सहस्त्रलिंग एक तीर्थस्थल है। यहां हर साल महाशिवरात्री पर भारि मेला लगता है। धीरज रखो मित्रो आपको पूरी हिस्ट्री बताएंगे ताकि आप भी किसी को ग़लत जानकारी ना दो। तो अब ये जानते है कि इसे कब ओर किसने इसका निर्माण करवाया। 17वी शताब्दी में सिरसी राज्य के राजा हुआ करते थे सदाशिवराय वर्मा। उन्होंने ही शालमला नदी के इन पत्थरों और चट्टानों पर ये आकृतियां बनवाई।

इन आकृतियों में शिवलिंग के अलावा जानवर भी दिखते है खास तौर से बैल जिसे भगवान शंकर की सवारी माना जाता है। इनके बनने का समय 1678 से 1718 तक का माना जाता है। हजारों की संख्या में ये शिवलिंग नदी का जलस्तर घटते ही दिखने लगते है। कर्नाटक के इन शिवलिंग कि जानकारी के अलावा एक और जानकारी मै आपको बताता हूं। ऐसे ही हजारों शिवलिंग कंबोडिया में भी है। जिनकी 1969 में जिन बोलबेट ने खोजा था। जीन मनुष्य जाती से जुड़े रहस्य खोजने में जुटे रहते है। ये राजा सूर्यवर्मन प्रथम के समय बनना शुरू हुए और राजा उद्यादित्य वर्मन के समय पर बनकर तैयार हुए। इन राजाओं ने 11वी और 12वी सदी में वहां राज किया था । ये वाले सहस्त्र लिंग कबल स्पियन।

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