जानिए आखिर जब माचिस का अविष्कार नहीं हुआ था तब आम घरों में आग जलाने के लिए किस विधि का प्रयोग होता था?
यकीन मानिए, आग जलाना उतना भी आसान नहीं जितना बेयर ग्रिल्स अपने शो में दिखाते हैं।
माचिस का अविष्कार 19वीं सदी में हुआ। घरों में प्रयोग करने योग्य लाइटर तो बीसवीं सदी में आ पाया। मानव समूह में घर बना कर हज़ारों साल पहले से रहना शुरू कर चुका था। घरों में खाना भी बनता था और जलने योग्य तेलों से रोशनी के लिए दिया, मशाल आदि भी जलाएं जाते होंगे। पत्थर रगड़ कर बार बार आग जलाना इतना आसान नहीं है, ऐसे में जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है कि घरों में दो या उससे भी अधिक बार चूल्हे कैसे जलाए जाते होंगे।
कुछ वर्ष पहले मेरे एक कर्मचारी ने इस बारे में बताया था। उसका घर शहर से दूर अत्यंत दुर्गम जनजातीय इलाके में है। उसने बताया कि गांव के किसी घर मे चौबीसों घण्टे आग जला कर रखी होती थी और जिन लोगों को अपने घर आग जलानी होती थी वह उस घर से आग मांग कर ले जाया करते थे।
नई आग जलाना इतना कठिन होता था कि अगर गांव में आग किसी कारण खत्म हो गई हो तो बगल के गांव से आती थी। मतलब सुबह शाम का चूल्हा जलना इतना आसान नहीं था। लोग देखते थे कि अगल बगल के किसी घर में आग जल गई हो तो मांग कर लाया जाए।
यह बहुत पुरानी बात नहीं है। पिछली सदी तक भारत के पिछले ग्रामीण इलाकों में यही स्थिति थी।