जब इन्द्र ने अपने पुत्र की विजय के लिए छल किया और महाभारत युद्ध में मदद की, तो सूर्य देव ने क्यों नहीं अपने पुत्र कर्ण की मदद की? जानिए
ऐसा नहीं है की सूर्य देव ने मदद नहीं की । जब सूर्य देव को मालूम चला की पांडव का सखा इन्द्र अपने पुत्र प्रेम में पड़कर और युधिष्ठिर के कर्ण के भय से पीड़ित देख कर्ण से उसका कवच कुंडल मांगने वाले हैं तब सूर्य देव कर्ण को रात में ही आगाह करने आते हैं । तब कर्ण सूती कालीन वाले बिछौने पर लेटे सो रहे थे तब सूर्य देव कर्ण के स्वप्न में आकर इन्द्र के छल के बारे में बताते हैं तब कर्ण कहता है की वह किसी भी उच्च ब्राह्मण के मांगने पर ना नहीं करेगा और प्राण भी दे देगा तब सूर्य देव कर्ण से कहते हैं की जब तुम कवच कुंडल दान करोंगे तब इन्द्र तुमसे वर मांगने को कहेंगे तब तुम उनसे उसका शक्ति अस्त्र मांग लेना पर कर्ण यहां सूर्य देव को टोककर कहता है कि कर्ण दान देना जानता है दान लेना नहीं। तब सूर्य देव कर्ण को समझाकर और अपना दिव्य खंजर देकर चलें जातें हैं और कर्ण का स्वप्न पूर्ण हो जाता है।
अगले दिन बीच दोपहरी में इन्द्र वेश धारण कर कर्ण से दान मांगते हैं तब कर्ण दिव्य खंजर से कवच को उधेड़ने लगता है तब स्वर्ग में बैठे देवता कर्ण पर पुष्प वर्षा करने लगते हैं और इन्द्र का सिर नीचे झुका रहता है जब कर्ण कवच कुंडल दान दें देता है और अपनी दिव्यता को देता है वैसे ही इन्द्र वहां से तुरंत निकल लेता है जैसे ही वह रथ पर चढ़ता है वैसे ही रथ धंस जाता है और भविष्यवाणी होती है की तुमने इन्द्र देवता और मनुष्य के बीच बनें नियम और विधि विधान को भंग किया है इसलिए अब तुम यहीं मनुष्य की भांति रहोगे तब इन्द्र इसका उपाय पूछते हैं और तुरंत कर्ण को जबरदस्ती शक्ति अस्त्र देकर वहा से जाने लगते हैं तब कर्ण कुछ कहता है की हे इन्द्र देव ये दान वाली बात किसी को मत बताना वरना लोग देवताओं पर विश्वास नहीं करेंगे और कोई भी कभी भूखे प्यासे व्यक्ति को दान नहीं देगा। पर जब करण दान दें रहें थे तो वहां उपस्थित अन्य दान लेने वाले लोगों ने यह देख लिया और हर तरफ हल्ला मच गया की कर्ण को इन्द्र ने छल लिया जब यह बात दुर्योधन को पता चली तो हक्का बक्का रह गया पर जब इन्द्र के शक्ति अस्त्र के बारे में जाना तब उसके शरीर में जान आई।।।।।।
नोट- कुछ अर्जुन भक्त कहते हैं कि करण कवच कुंडल के लायक नहीं था इसलिए इन्द्र ने कवच ले लिया तो मैं बता दूं की भीष्म पितामह भी भीष्म प्रतिज्ञा के बाद एक राजसिंहासन के दास बन गए थे तो उनका इच्छा मृत्यु का आशीर्वाद क्यों नहीं विफल हुआ। अर्जुन जब दोपदी के कक्ष में बिना पूछे घुस गया था और बाद अपने दोपदी वाले एक वर्ष से दूर रहकर अन्य राज्य में जाकर वहां राजकुमारियां से विवाह किया और पुत्र उत्पन्न किया तो वह कैसे धर्मी हुआ जबकि भगवान राम ने एक पत्नी वाले पुरुष को ही धर्मी कहा है।
और कर्ण का कवच कुंडल वनवास खत्म होने के कुछ समय पहले क्यों लिया कहीं इन्द्र भगवान राम से बड़ा तो समाजसेवी तो नहीं हो गया सच ये है कि इन्द्र को सिर्फ अपने पद और अपने कामवासना के अतिरिक्त कुछ सूझता ही नहीं है ।
और हम हिन्दू इतने भी वो नहीं है जो भगवान राम शिव और विष्णु जैसे गुणवान और सीता और पार्वती जैसी सती देवी देवताओं को छोड़कर इन्द्र और पांडव जैसे लोगों की पूजा करना शुरू कर दे क्योंकि ये लोग पूजनीय नहीं है और इनके अंदर समाज कल्याण की भावना भी नहीं थीं ।