चंद्रशेखर आज़ाद को धोखा किसने दिया? जानिए

चंद्रशेखर आज़ाद बहुत चतुर-चालाक थे। वेश बदलने में वो इतने माहिर थे कि अंग्रेजों के पास उनकी कोई फ़ोटो तक नही थी।इसलिए उनको पकड़ना तो दूर पहचानना ही मुश्किल था।

आज़ाद उस दिन इलाहाबाद में थे ये बात बहुत कम लोगों को पता थी उसमें से एक जवाहर लाल नेहरू थे जिनसे वो एक दिन पहले मिले थे। पर आज़ाद की ही पार्टी Hindustan Socialist Republican Association का एक सदस्य भी उनसे मिला था जिससे उनका वाद-विवाद भी हुआ था।

अब ये लगभग पक्की जानकारी है कि इसी व्यक्ति ने अंग्रेजों को इस महान क्रांतिकारी के अल्फ्रेड पार्क में होने की मुखबिरी की थी। इस पर आज़ाद को पहले से ही अंग्रेज़ों के साथी होने को लेकर शक भी था।

आज़ाद की मृत्यु के बाद उनके साथी इस गद्दार की जान के दुश्मन बन गए ,इसको इधर-उधर भागते रहना पड़ा। अंग्रेज़ों ने अपने मुखबिर की जान बचाने के लिए उस पर एक पुलिस अफसर को मारने की कोशिश का फर्जी केस चलाकर जेल में बंद कर दिया ताकि वो सुरक्षित रहे।

उसको कई सुविधाएं दी गई, अंग्रेज़ों के लंबे राज़ में सिर्फ एक हिंदुस्तानी को जेल में शादी की इजाज़त दी गई जो यही था। उसके लिए जेल के कानून बदल दिए गए।ज़ाहिर सी बात है कि अंग्रेज उससे किसी बात से तो खुश थे!! इतनी सुविधाएं तो गांधी,नेहरू को भी नही दी जाती थी।

इसको 14 साल की सज़ा हुई थी पर 6 साल बाद राजनीतिक कैदी बनाकर छोड़ दिया गया , जबकि अहिंसावादी आंदोलन वालों को ही राजनीतिक कैदी माना जाता था और ये तो पुलिस पर हमले के आरोप में बंद था। वैसे इसकी वकील श्यामा नेहरू थी जो चाचा नेहरू की दूर की रिश्तेदार थी।

इस व्यक्ति का नाम यशपाल था जो आज़ादी के बाद एक मशहूर लेखक बने, सबसे बड़ी विडंबना ये रही कि यशपाल ने अपने क्रांतिकारी जीवन के अनुभवों पर कई किताबें लिखी। इनको कई साहित्यिक अवार्ड और पद्मभूषण भी दिया गया।

जब अंग्रेज 1947 में जा रहे थे तब अपने मुखबिरों से सम्बंधित सभी रिकॉर्ड नष्ट कर रहे थे तब गलती से एक पत्र बच गया था जिसमे इसका नाम था। ये पत्र 1970 के आसपास एक CID अफसर के हाथ लगा। इस पत्र में दो और मुखबिरों के बिना नाम का ज़िक्र है ,एक मुस्लिम लीग में दूसरा AICC में ,इनके नाम कभी पता नही चले।

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