घृणेश्वर महादेव की कहानी क्या है? उनका यह नाम क्यों पड़ा?
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में पुराणों में यह कथा है – दक्षिण देश में देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई कष्ट उन्हें नहीं था। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। इस कारण
सुदेहा अत्यंत दुखी तथा चिंतित रहती थी पुत्र की कामना वश होकर उसने अपने पति कादूसरा विवाह करने का निश्चय किया जब यह बात उसने सुधर्मा को बताई तो उसने साफ मना कर दिया
और दूसरे विवाह कोमंजूरी नहीं दी परंतु सुदेहा के जिद और पुत्र प्राप्ति की लालसा को देख
अंत में उन्हें पत्नी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा। वे उसका आग्रह टाल नहीं पाए। सुदेहा के इच्छा अनुसार वे सुदेहा की छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। घुश्मा अत्यंत शांत और बहुत बड़ी शिव भक्त थी। वह भगवान् शिव की अनन्य भक्ता थी। प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा के साथ उनका पूजन कर उन्हे जल मे समर्पित करती थी।
भगवान शिवजी की कृपा से थोड़े ही दिन बाद उसके गर्भ से अत्यंत सुंदर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म से सुदेहा और घुश्मा दोनों के ही आनंद का पार न रहा। दोनों के दिन बड़े आराम से बीत रहे थे। लेकिन न जाने कैसे थोड़े ही दिनों बाद सुदेहा के मन में एक सौतिया दाह ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा तो इस घर में कुछ है नहीं। सब कुछ घुश्मा का है। अब तक सुदेहा के मन । अपनी बहन और उस पुत्र के प्रति ईर्ष्या होने लगी थी इस ईर्ष्या मे उसने एक दिन घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को समर्पित करती थी
। सुबह होते ही सबको इस बात का पता लगा। पूरे घर में कुहराम मच गया। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे। लेकिन घुश्मा नित्य की भाँति भगवान् शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। सभी उसको जीवित देख प्रसन्न हुए भगवान शिव सुदेहा के इस कूकर्म से क्रोधित थे
वह सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत क्रुद्ध हो उठे थे। अपने त्रिशूल द्वारा उसका गला काटने को उद्यत दिखलाई दे रहे थे। वे घुसम्मा से बोले तुम पर प्रसन्न हूँ वर मांगों घुसमा प्रभु के क्रोध को समझ गई वह हाथ जोड़कर भगवान् शिव से कहने लगी ‘प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें। निश्चित ही उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है किंतु आपकी दया से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप उसे क्षमा करें और प्रभो!
मेरी एक प्रार्थना और है, लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करें।’ भगवान् शिव ने उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं। ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहाँ घुश्मेश्वर या घृष्णेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा पुराणों में बहुत विस्तार से वर्णित की गई है। इनका दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है।