क्यों भगवान शिव ने निगला था दैत्यगुरु शुक्राचार्य को?

एकबार दैत्यगुरु उशना ने योगबल से धनाध्‍यक्ष कुबेर के भीतर प्रवेश करके उन्‍हें अपने काबू में कर लिया और उनके सारे धन का अपहरण कर लिया। धन का अपहरण हो जाने पर कुबेर को चैन नहीं पड़ा। वे कुपित व चिंतित होकर महादेव के पास गये । उस समय उन्‍होंने भगवान शिव से इस समस्या के निवारण हेतु निवेदन किया और सारी घटना बताई ।

यह सुनकर महेश्वर कुपित हो गये और हाथ में शूल (भाला) लेकर उशना को दंडित करने को तत्पर हो गये । उशना भी उस भाले के अंदर जा छिपे पर महादेव के यह पता था तो उन्होंने उस भाले को धनुष की तरह मोड़कर उशना को हाथ मे लेकर निगल गए । उसके बाद उशना महादेव के उदर मे घूमते रहे । फिर एक समय बाद शुक्राणु के रुप मे उशना महादेव के शरीर से बाहर निकले ।

महादेव उशना का वध करने ही वाले थे परंतु देवी पार्वती ने उन्हें रोक लिया और कहां कि — स्वामी इतने दिनों पश्चात आपके उदर से बाहर निकलने के कारण अब यह आपके पुत्र समान हो गया हैं कृपया इसका वध न करे और इसे क्षमा करे । उशना ने भी अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी । महादेव ने उस समय से उशना को अपने पुत्र समान मान लिया और उसे शुक्र नाम से परिभाषित किया । तबसे उशना शुक्राचार्य कहलाए जाने लगे ।

यह कथा महाभारत शांति पर्व के अध्याय 289 मे मिलती हैं ।

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