क्या हुआ होता यदि महाराज युधिष्ठिर जुए के खेल में कौरवों से जीत गए होते ?

अगर युधिष्ठिर जुए में कौरवों से राज्य धन सपड़ा जिट जाते तो दुर्योधन के मांगने पर फिर से वापिस कर देते क्योंकि वह बडे थे और बडे देकर ही खुश होते है जबकि छोटों का आचरण विपरीत होता है उन्हें लेने में जि ख़ुशी मिलती है.

वह जुयालन बहलाने के लिए खैल रहे थे राजसी शान के रूप में. यह उनका व्यसन न था शोक था. रजौचित गुण था.अगर दुर्योधन नहि भी मानगता तो भी युधिधष्ठिर उसे उसका हरा हुआ राज्य वापिस डे देते. यह धर्मानुसार आचरण ही होता.

उनके मन में मैल नहि था. इसके प्रमाण भी है. ज़ब इतबा सब हो गया और चित्ररथ ने दुर्योधन को बंडि बना लिया कर्ण भाग गया. तब उन्होंने अर्जुन भीम को दुर्योधन को छोड़ने के लिए भेजा. ऐसी उदारता धर्मराज के बिना कौन रख सकता है.

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