क्या सचिन तेंदुलकर एक स्वार्थी खिलाड़ी थे? जानिए सच

वह 22 अप्रैल, 1998 की रात थी। ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी की।ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत पे हावी थी। ये मैच शारजाह में हो रहा था, माहौल घर जैसा ही था। पुरुष, महिलाएं, बच्चे सभी वहां मौजूद थे, न केवल भारत को देखने के लिए बल्कि सचिन की बल्लेबाजी को देखने के लिए।

ऑस्ट्रेलियाई टीम ने हमें 285 का लक्ष्य दिया था। लेकिन तभी एक धूल का तूफ़ान आया । लक्ष्य को 46 ओवर में 276 में बदल दिया गया। लेकिन भारत का मुख्य लक्ष्य फाइनल के लिए क्वालीफाई करना था। उसके लिए, हमें 237 तक पहुंचने की जरूरत थी। तूफान थम गया, रेगिस्तान की हवा साफ हो गई और लिटिल मास्टर बल्लेबाजी करने के लिए बाहर आए।

ऑस्ट्रेलियाई टीम को पता भी नहीं था कि असली तूफान अभी आना बाकी है। अगले 43 ओवर में, इतिहास बनाना था। एक ऐसी रात जो हर भारतीय क्रिकेट प्रशंसक की याद में आज भी ताज़ा हैं।

यह पारी अलग थी। यह एक दूसरे की तरह नहीं था। तेंदुलकर को कई चीजों के लिए याद किया जाएगा, लेकिन शारजाह हमेशा खास रहेगा। उस रात भगवान को अपने सबसे रौद्र रूप में देखा।में उस समय सिर्फ १५ साल का था मुझे उस दिन पता चला क्रिकेट कितना खूबसूरत खेल हैं। आज भी मेरी यादो में वह दृश्य हैं जब तूफ़ान चल रहा था और सचिन पिच पे खड़े हुए थे। हम लोगो ने न सिर्फ फाइनल के लिए क्वालीफाई किया बल्कि फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराया भी, और फाइनल में भी सचिन ने एक सैकड़ा बनाया।

सचिन को स्वार्थी बोलने वालो से में सिर्फ यह पूछना चाहता हूँ की अगर सचिन स्वार्थी होता तो क्या वह अंपायर के आउट देने से पहले कभी भी वॉक आउट करता, सचिन ने यह अपनी ज़िन्दगी में बहुत बार किया हैं।

हाँ में मानता हूँ की सचिन अत्यधिक दबाव में अच्छा नहीं खेल पाते थे पर हमको यह भी देखना चाहिए की उस समय की भारतीय टीम आज की तरह नहीं हुआ करती थी, पुरे भारत वर्ष की उम्मीदे अकेले एक आदमी अपने कंधो पे उठा के चलता था। सचिन आउट मतलब भारत आउट। इसलिए उसको थोड़ा तो अपने बारे में सोचना ज़रूरी था।

अगर सचिन स्वार्थी होते तो कभी भी कप्तानी न छोड़ते पर उनको जैसे ही यह पता चला की कप्तानी उनके खेल को प्रभावित कर रही हैं उन्होंने तुरंत कप्तानी छोड़ दी।

कुछ लोग यह भी कहते हैं की सचिन की वजह से राहुल द्रविड़ को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे, पर मेरे हिसाब से इसमें सचिन की कोई भी गलती नहीं हैं।

सचिन की फेयरवेल स्पीच आज भी मेरे दिल में ताज़ा हैं। पूरा भारत रो रहा था, वह जो शब्द बोल रहे थे वह किसी स्वार्थी व्यक्ति द्वारा नहीं बोलै जा सकते।

अंत में सिर्फ यह कहना कहता हूँ भले विराट कोहली उसके सारे रिकॉर्ड तोड़ दे पर वह सचिन की बराबरी भी नहीं कर सकता , सचिन ने उस समय भारत को जोड़ा जिस समय हमारे पास खुश होने की ज्यादा वजह नहीं हुआ करती थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *