क्या सचमुच भगवान श्री राम ने अयोध्या में हंसने पर पाबंदी लगा दी थी? जानिए सच

इस आलेख में देवदत्त पटनायक ने दो कथाएं साझा की हैं, इनमें से एक कथा अयोध्या वासियों के हंसने पर प्रतिबंध के बारे में है, जिसे मैं हूबहू प्रस्तुत कर रहा हूं। इस आलेख में देवदत्त पटनायक लिखते हैं कि…..

”अपने एक दरबारी की हंसी सुनकर राम को युद्ध में रावण की हंसी याद आ जाती है। युद्ध के दौरान जब भी राम तीर से रावण का सिर काटते, वह आकाश में ऊपर उठता और जोर की हंसी के साथ रामचरणों में गिर जाता। इससे राम को लगता था कि रावण उनका ठठ्ठा कर रहा है। लेकिन रावण इसलिए हंस रहा था कि राम के कारण उसका ज्ञानी सिर उसके अज्ञानी-लालची शरीर से मुक्ति प्राप्त कर चुका था। राम यह बात कभी नहीं समझे और इसलिए उन्होंने अपने दरबारी की हंसी का गलत अर्थ लगा लिया और पूरी अयोध्या में हंसने पर प्रतिबंध लगा दिया। हंसने वालों को कैद कर लिया जाता! इसका भयंकर परिणाम हुआ। लोगों ने अनुष्ठान करना, त्यौहार मनाना और नाटक या नृत्य देखना बंद कर दिया। उन्होंने खेल खेलना और आपस में घुलना-मिलना भी बंद कर दिया।

बात इतनी बिगड़ गई कि उन्होंने दूसरों की आंखों में आंखें डालकर देखना भी बंद कर दिया। उन्हें डर था कि उन्हें कहीं हंसी ना आ जाए। अनुष्ठान नहीं किए जा रहे थे। इससे परेशान देवों ने ब्रह्मा से शिकायत की। ब्रह्मा अयोध्या गए और वहां उन्होंने एक बरगद के पेड़ का रूप धारण कर लिया। जब एक लकड़हारा इस पेड़ के पास गया, तब ब्रह्मा खिलखिलकर हंसने लगे। पेड़ को हंसते हुए देखकर लकड़हारा भी जोर से हंसने लगा। उसकी हंसी को सुनकर उसका परिवार, उसके दोस्त, पूरी अयोध्या, सिपाही, मंत्री, राजघराने के सदस्य और यहां तक कि राम भी हंसने लगे। लेकिन राम इस वाकये से इतने परेशान हो गए कि उन्होंने उसके बारे में पूछताछ की।

हंसने वाले पेड़ के बारे में जानकर उन्होंने उसे काटने का आदेश दे दिया। लेकिन जो कोई भी पेड़ के नजदीक जाता, उस पर पेड़ पत्थर फेंकता। जब यह बात राम को बताई गई उन्होंने स्वयं पेड़ को काटने का निर्णय लिया। इससे घबराकर ब्रह्मा ने वाल्मीकि से मदद मांगी। तब महर्षि वाल्मीकि ने राम को समझाया, ‘राम, मेरे द्वारा आनंद रामायण लिखने का उद्देश्य था लोगों के चेहरे पर मुस्कराहट और हंसी लाना, क्योंकि यह लोगों के खुश होने का संकेत है।

धन की देवी लक्ष्मी भी खुशी को देखकर ही आकर्षित होती हैं। इसलिए मेरी आपसे विनती है कि हंसी पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दें। आप यह क्यों मान रहे हैं कि लोग आप पर हंस रहे हैं? आप भगवान हो, यह बात समझिए कि लोग इसलिए हंस रहे हैं क्योंकि आपने उन्हें मुक्त किया है। अपने देवत्व पर संदेह मत कीजिए।Ó वाल्मीकि की बात राम मान गए और उन्होंने हंसी पर से प्रतिबंध हटा दिया। अयोध्या में खुशी और समृद्धि फिर से लौट आई।”

दैनिक भास्कर में प्रकाशित इस आलेख में देवदत्त पटनायक लिखते हैं कि आनंद रामायण नामक संस्कृत काव्य 15वीं सदी में लिखा गया। उसका श्रेय भी वाल्मीकि को ही दिया जाता है। आनंद रामायण की कहानियों में राम राज्य की शोभा को महत्व दिया गया है।

उपरोक्त संदर्भ से स्पष्ट है कि देवदत्त पटनायक ने भगवान श्री राम द्वारा अयोध्या में हंसने पर प्रतिबंध लगाने की जो कथा शेयर की है, वह कहां से ली गई है और उसमें हंसने पर पाबंदी के कारणों का जिक्र किया गया है।

यह कथा कितनी सत्य है और कितनी असत्य, इस बारे में विद्वान-गुणी जन ही प्रकाश डाल सकते हैं। मैंने इस बारे में ज्यादा जानकारी पाने की उत्सुकता से यह सवाल कोरा पर किया है। आशा है मित्र गण मेरे इस प्रश्न को पूछने का कारण समझ गए होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *