क्या रेलवे का निजीकरण करना मोदी सरकार का सही फैसला है या गलत? जानिए

इसे किसी भी सूरत में सही फैसला नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि ये फैसला एक तो कुछ परिवारों तक सीमित है दूसरी अहम् बात है कि जिस क्षेत्र में वे काम कर रहे है वही ढंग से नहीं चल पा रहा है यानि कौवे को हंस की चाल में चलवाया जा रहा है जो पता चलेगा अपनी भी चाल खो रहा है।

उदाहरणस्वरूप अंबानी ग्रुप की कंपनियों को ही ले लिया जाए तो पता चलता है कि इनकी केवल Reliance Industry Ltd के अलावा सभी कंपनियां ढंग से चल नहीं पा रही है। Reliance Industry भी तभी चल पा रही है जब इसके डीजल आपूर्ति रेलवे में सरकारी कंपनी Indian Oil Corporation से हटा कर इन्हें दी गई है।

इनके अलावा निजी क्षेत्र परिवारवाद का शिकार हो जाती है जो ज्यादा समय तक नहीं चल पाते हैं जैसे बिरला ग्रुप, मोदी ग्रुप, जेके ग्रुप आदि की कंपनियां। इनके विपरीत ध्यान देने पर सरकारी क्षेत्र में ये अधिकांशतः पनपती ही है जैसे रेलवे। सरकारी क्षेत्र केवल वही डूबा है जिसमें प्रबंधन वहीं के लोगों की बजाय बाहर से आईएएस अधिकारियो आदि को नियुक्त कर उनके हाथ में दिया है।

रेलवे को चौपट करने का निजीकरण एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है।क्योंकि यह ग़रीबों व मध्यम आय वर्ग की रीढ़ है जो निजीकरण से टूट ही सकती है, उन्हें ऊपर तो उठाने से रही।

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