क्या मानव को चाँद पर जाने से कोई लाभ हुआ है या फिर यह केवल एक पब्लिसिटी स्टंट था?

जिस दिन इंसान ने चांद पर कदम रखा था ठीक उसी दिन से एक विशेष विचारधारा के लोगों ने यह भ्रम फैलाया कि इंसान कभी चांद पर गया ही नहीं। यह भ्रम काफी लंबे समय तक दुनिया में राह और आज भी ऐसे अनेकों लोग मिल जाएंगे जिन्हें लगता है कि इंसान कभी चांद पर गया ही नहीं था लेकिन अब इस बात की पुख्ता प्रमाण मिल चुके हैं कि इंसान चांद पर गया भी था वहां पर चहलकदमी भी की की थी और वैज्ञानिक नमूने भी चांद की धरती से जुटा कर लाया।

एक नए विचारधारा का जन्म उस समय हुआ जब व्यक्ति चांद पर जा चुका था। कुछ लोग कह रहे थे कि चांद पर जाने में अमेरिकी सरकार इतना पैसा क्यों खर्च कर रही है जबकि इस पैसे से अनेक गरीब लोगों को शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत चीजें दी जा सकती हैं। ऐसे लोग भारत में भी है जो भारत के अंतरिक्ष अभियानों की और भारत में बनने वाले कुछ नए पर्यटन केंद्रों की यह कहकर आलोचना करते हैं कि जो धनराशि अंतरिक्ष अभियान और नए पर्यटन स्थल खोलने में खर्च की जाती है उस धनराशि से तो हजारों गरीब लोगों की शिक्षा स्वस्थ उत्तम बनाया जा सकता है। शायद आप में से भी कई ऐसे लोग होगें जिन्हें यह लगे कि मनुष्य का चांद की सतह पर 8 बार जाना जाना व्यर्थ था और अमेरिका ने केवल पब्लिसिटी बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया था।

हो सकता है कि मनुष्य को चांद पर भेजने में अमेरिका की कई सारे निजी हित शामिल हो इनसे कोई इंकार नहीं करता। लेकिन मनुष्य के चांद पर जाने से जो लाभ मानव जाति को हुआ है वह अतुलनीय है और उससे केवल अमेरिका को ही नहीं अभी तो पूरी मानव जाति को लाभ हुआ है।

नीचे अब वह बिंदु पड़ेंगे जो लाभ हमें मनुष्य को चांद पर पहुंचाने से मिला है।

50 वर्ष पहले जब अपोलो मिशन चांद पर गया तब उसने ऐसी गहरी तकनीकों का आविष्कार किया जिन से मानव जीवन मानव जीवन को बहुत गहरा लाभ पहुंचा है। जैसे

जब अपोलो रॉकेट को लॉन्च किया जाना था तब इंजीनियर एक बड़ी समस्या से रूबरू हुए वह समस्या थी वाइब्रेशन की जिस समय अपोलो को लांच किया जाता तब एक बहुत ही भयंकर वाइब्रेशन से इंजीनियरों को सामना करना पड़ता। इसके लिए शॉक अब्जॉर्बर तकनीक आविष्कार किया गया और आज ये ही तकनीक ऊंची ऊंची बिल्डिंग में भूकंप रोकने के लिए उपयोग होती है।

अगर अपोलो मिशन के लिए शॉक एब्जॉर्बर तकनीक अविष्कार ना होता तो आज इतने ऊंचे ऊंचे इमारतें खड़ी ना हो पाती और भूकंप से भी कई लोग जान गंवा चुके होते, रेलवे लाइन और रेलवे के पुल भारी भारी यातायात के पुल भी इतनी मजबूती के साथ कभी ना बन पाते।

नासा के जो एस्ट्रोनॉट चांद पर जा रहे थे उनके स्वास्थ्य की जांच करने के लिए मेडिकल मॉनिटर बनाए गए थे। जो आज हर एक अस्पताल में इस्तेमाल होते हैं और इंसान की दिल साँस और खून के स्तर का लाइव टेलीकास्ट उपलब्ध कराते हैं

जरा सोचिए यह तकनीक मरीजों के लिए कितनी लाभप्रद है जो अपोलो मिशन के दौरान खोजी गई थी।

जिस समय अपोलो चांद पर उतरा था एस्ट्रोनॉट और रॉकेट को विकिरण रोधी चादर से ढका गया था जिसे रेडियंट बैरियर इंसुलेशन कहा जाता है। इसका उपयोग आज कहीं पर आग लग जाने पर लोगों को सुरक्षित निकालने में किया जाता है। फायरफाइटर्स भी इस का उपयोग करते हैं।

एस्ट्रोनॉट के कपड़े खास पॉलीमर फाइबर से तैयार किए गए थे जिनमें आग नहीं लगती थी। इन्हीं कपड़ों का उपयोग आज सेना फायरफाइटर्स और विभिन्न संगठनों के लोग आपात स्थिति में या देश की रक्षा में करते है।

जब भी कहीं पर बाढ़ आती है आपने देखा होगा की एनडीआरएफ की टीम एक ऑरेंज कलर की बोट में सवार होती है। जिसे हवा भर कर बड़ा बनाया जा सकता है

इन्हें इनफ्लैटेबल राफ्ट्स कहा जाता है। इनका आविष्कार भी अपोलो मिशन का हिस्सा था इन्हें तब बनाया गया था जब अपोलो मिशन के एस्ट्रोनॉट्स को वापस लेकर आना था।

आज हम लोग रोमांचक खेल के तौर पर भी इन बोट्स का उपयोग करते हैं।

अपोलो मिशन के एस्ट्रोनॉट के लिए खासतौर पर हेयरिंग गैजेट्स बनाए गए थे जो उन्हें सुनने में मदद करते थे। आज यही गैजेट्स हमारे वह दिव्यांग भाई-बहनों प्रयोग करते हैं जो सुन नहीं सकते या जिन की सुनने की क्षमता की सुनने काफी कम होती है।

सोचिए अगर यह सब ना होता तो कितने लोग अपने जीवन से ज्यादा हाथ गंवा चुके होते हैं या फिर उस का आनंद नहीं उठा पाते।

प्रकृति हमें खोजी बने रहने के लिये प्रेरित करती हैं और हमें अलोचकों कि चिन्ता किये बिना यह करते रहना चाहिए।

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