क्या “महात्मा गाँधी” जी भारत रत्न के हक़दार नहीं थे?
जब जब बात गांधी नेहरू के महिमा मंडन की होती है , चाहे वह गांधी को भारत रत्न देने की हो या नोबेल पुरस्कार देने की हो, मेरे मन में हमेशा एक सवाल कौंधता है । जब देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ तो गांधी नेहरू की अगुवाई ने मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र पाकिस्तान बन जाने के बावजूद पूर्ण नागरिक अधिकारों के साथ उन्हें भारत में रहने देने के पीछे उनकी मंशा क्या थी? २० लाख से ज्यादा हिंदुओं का कत्ल और दो करोड़ से ज्यादा हिंदू शरणार्थि बनाने के बावजूद उन्हें अंत तक पछतावा क्यों नहीं हुआ?
सन् १९४७ में, जब भारत आजाद हुआ , मैं ६ वर्ष का था। कुछ भी समझने लायक नहीं था । उस समय भी , जब रात में छत की निगोली पर चढ़कर नाना लोग ” हर हर महादेव ” का घोष करते थे और मैं पूछता था ” नाना क्या हुआ ” तो उनका उत्तर भले ही मुझे पूरी तरह समझ नहीं आता था पर मन उदास जरुर हो जाता था । लगता था कुछ तो गलत हुआ है । तबसे अब तक मैं अक्सर ” नाना ” के उत्तर को समझने की कोशिश करता हूं । जितना ज्यादा सोचता हूं , गांधी नेहरू के लिए मन में घृणा और बढ़ जाती है।
आज मैं ८० के करीब हूं। गांधी , नेहरू , नाना इन सबसे ज्यादा उमरदार, ज्यादा अनुभवी। लेकिन आज भी मुझे इसका कोई वाजिब उत्तर नहीं मिलता। बस , शर्म आती है खुद पर। आजाद भारत में जिन शख्स पर ” क्राईम अगेंस्ट हियुमैनिटी ” के तहत केस दर्ज होना चाहिए था , आज भी हम उनका महिमा मंडन करने को मजबूर हैं। आज भी ३० जनवरी को शहीद दिवस और २ अक्टूबर को जन्म दिन मनाने को मजबूर हैं क्योंकि ” चाचा नेहरू ” ऐसा फ़रमान वसीयत में दे गए हैं।
जब छोटा था , परीक्षा पास करने के लिए उनके तथाकथित महिमा मंडन का रट्टा मारने को मजबूर था। आज सूपर सिटिजन के करीब होने पर भी स्थिति वही है।
कब खुलेगी हमारी आंखों से गांधी नेहरू महिमा मंडन की पट्टी ? कब बंद होगा इस तरह के वाहियात सवालों की सृंखला ? कब मिलेगा उन लाखों निरीह हिंदुओं के कत्लेआम और करोड़ों हिंदू शरणार्थियों को न्याय? या हम ७२ साल पहले हुए उस मानवता के खिलाफ अपराध को ” जो हो गया , सो हो गया ” कह कर टालते रहेंगे?
कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम जले पर नमक तो मत छिड़को ! ऐसे सवाल मत पूछो जो मन के घाव हरा कर दें।