क्या पाकिस्तानियों ने 1971 में 1 मिलियन बंगालियों को मार दिया था? जानिए सच

अब जब बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है, यह सबसे अच्छा समय है कि युद्ध से जुड़े मिथकों के बारे में बताया जाय । मिथक यह है कि पाकिस्तानी सेना ने लाखों ‘बंगालियों’ को मार डाला। नहीं उन्होंने ऐसा नहीं किया था हीं। उन्होंने लाखों बंगाली हिंदुओं को मार डाला था । और मौत का वारंट का जो फैसला लिया गया वो चमड़े के एक टुकड़े के आधार पर था ।किसी के शिश्नमुंड (foreskin) के आधार पर । यह चित्र उस शुद्धिकरण का प्रतीक है । जनरल याह्या खान ने कहा है कि “उनमें से तीन लाख को मार डालो, और बाकी हमारे हाथों से खाएंगे।” जिस 3 मिलियन का वह जिक्र कर रहे थे वह बांग्लादेशी हिंदू थे।

“…… ” हमें हिंदुओं और काफ़िरों (ईश्वर में विश्वास न करने वाले) को मारने के लिए कहा गया था। जून में एक दिन, हमने एक गाँव को घेरा और उस क्षेत्र में काफ़िरों को मारने का आदेश दिया गया। हमने सभी गाँव की महिलाओं को पवित्र कुरान का पाठ करते हुए पाया, और पुरुष विशेष मण्डली की प्रार्थना कर रहे थे जो ईश्वर की दया चाहते थे। लेकिन वे बदकिस्मत थे। हमारे कमांडिंग अधिकारी ने हमें समय बर्बाद नहीं करने का आदेश दिया। ” – एक पाकिस्तानी सैनिक का कबूलनामा

यह अलग बात है कि बाद में कई बंगाली बुद्धिजीवी, चाहे मुस्लिम भी थे, को भी उठाकर मार दिया गया। लेकिन ऐसा वहां अलगाववाद के उदय के कारण हुआ था । प्राथमिक फोकस हिंदू थे।

युद्ध ’उन लोगों के उन्मूलन की ओर था जिनके पास शिश्नमुंड (foreskin) था और उनकी महिलाओं की संसेचन था। जमात-ए-इस्लामी के इस्लामी कट्टरपंथी के समर्थन से पाकिस्तानी सेना ने 200,000 और 3,000,000 के बीच बंगाली हिंदुओं (मुख्य रूप से) की हत्या कर दी और 200,000 और 400,000 के बीच बंगाली हिंदू महिलाओं का बलात्कार किया। जमात-ए-इस्लामी के नेताओं ने घोषणा की कि बंगाली हिंदू महिलाएं “गोनिमोटर माल” (सार्वजनिक संपत्ति) थीं। लगभग 8 मिलियन बंगाली हिंदू भारत भाग आए ।

‘बंगाली हिंदुओं’ को भारतीय सरकार ने ‘बंगाली’ करार दिया था। इसके दो कारण थे । सांप्रदायिक जुनून ना भड़के और दूसरी बात यह थी कि जातीयता की भावना बांग्लादेश में अलगाववाद की आग भड़काएगी। लेकिन उस सुविधाजनक निति को अब इतिहास बना दिया गया है और ‘सत्य’ को दफन कर दिया गया है।

कुछ दिनों पहले सोशल मिडिया पर एक फोटो घूम रही थी। 4 बांग्लादेशी महिलाओं का , जो उस समय योद्धा थी, तब और अब की छवि के साथ, । 1971 में वे बंगाली थे । आज वे पूरे इस्लामिक दिखते हैं। और बांग्लादेश की उस सच्चाई के बारे में बताया जाना चाहिए। आज बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति उसी आधार पर नजरअंदाज की जाती है जिस आधार पर 1971 में हुई थी। जिससे भारत में सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के लिए। इसीलिए बांग्लादेशी प्रशासन को बैकफुट पर नहीं लाया जाता है,क्योंकि वो चीन और पाकिस्तान की गॉड में जाकर बैठ जाएगा । इस प्रकार, अतीत के वही खिलाड़ी, अब एक बार फिर से, उनके पास वही करने का लाइसेंस है जो उन्होंने किया था। आज, ‘धर्मनिरपेक्षतावादियों’ ने उन हत्याओं को सफ़ेद कर दिया, जो ट्रांसपेरेंट थीं।

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