क्या छिपकलियाँ अपनी पूँछ छोड़कर भाग जाती हैं ? यदि हाँ, तो वे ऐसा क्यों करती हैं ?

जीव-जंतु, पशु-पक्षी अपने हमलावरों से रक्षा के लिए नाना प्रकार के तरीके अपनाते हैं। छिपकलियाँ अपनी रक्षा के लिए पूँछ छोड़कर भागने का तरीका भी अपनाती हैं। सामान्यतः वे खतरा होने पर मुरदे के समान निश्चल पड़ जाती हैं और दुश्मन को बेवकूफ बना देती हैं लेकिन कभी दुश्मन इनकी इस चाल से बेवकूफ नहीं बन पाता है तो छिपकलियाँ बड़ी तेजी से छलाँग लगाते हुए उठकर भाग जाती हैं।

भागते समय वे दुश्मन को उलझाए रखने के लिए अपनी पूँछ छोड़ जाती हैं। दुश्मन उनकी छटपटाती पूँछ देखने में लग जाता है, तब तक वे भागकर नौ दो ग्यारह हो जाती हैं और अपनी जान बचा लेती हैं। छिपकली की पूँछ न रहने से उसे कोई खास हानि नहीं होती है; क्योंकि कुछ समय के बाद नई पूँछ आ जाती है। छिपकली की पूँछ रीढ़ की हड्डी के उस विशिष्ट स्थान से अलग होती है जहाँ से पेशियाँ आसानी से पृथक् हो जाती हैं। अपनी रक्षा के लिए पूँछ छोड़कर भाग जाना छिपकलियों की विशेषता है; लेकिन जब इस तरकीब से बचाव नहीं हो पाता है तो वे पंजे मारने, काटने और खून की पिचकारी मारने आदि के तरीके भी अपनाती हैं।

जब आँखें बंद करके किसी प्रकाश स्रोत की ओर देखते हैं तो हमें लाल रंग क्यों दिखाई देता है ?
मारी आँखों की पलकें हालाँकि अपारदर्शी होती हैं; लेकिन ह इन पलकों में रक्तवाहिनियों का जाल-सा बिछा होता है। इनमें बह रहा रक्त प्रकाश को परावर्तित करने का कार्य करता है। इसलिए जब हम आँखें बंद किए होते हैं और प्रकाश के स्रोत की ओर देखते हैं तो रक्त वाहिनियों में परावर्तित प्रकाश के कारण हमें लाल रंग दिखाई देता है।

यदि पलकों को किसी ऐसे कपड़े आदि से ढक या कसकर बाँध दिया जाए जिससे पलकों तक प्रकाश पहुँच ही न सके तो परावर्तन के अभाव में ढकी या कसकर बँधी आँखों से हमें लाल रंग दिखाई नहीं देगा। पलकों की तरह रक्त वाहिनियों में परावर्तित प्रकाश के कारण ही हथेली को किसी प्रकाश स्रोत जैसे टॉर्च आदि के प्रकाश पर रखने से हथेली भी लाल दिखाई पड़ती है।

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