क्या कभी बेटा पिता के आदेश पर माता का सिर धर से अलग कर सकता है? परशुराम की कथा
दोस्तों, भगवान परशुराम जी विष्णु के क्रोध अवतार है। और भगवान शिव के महाभक्त है। इनको भगवान विष्णु के छठे अवतार है। दोस्तों, ग्रंथो के अनुसार भगवान परशुराम जी को अमर बताया गया है। भगवान परशुराम के गुरु भी भगवान शिव है। इनके पिता का नाम जमदग्नि ऋषि है।
एक बार की बात है ऋषि जमदग्नि अपने पुत्रो के साथ मिलकर यज्ञ कर रहे थे। किंतु परशुराम जी उस यज्ञ में नहीं होते है क्योंकि वह भगवान शिव से शस्त्र विद्या का ज्ञान लेने गए थे।
ऋषि अपनी पत्नी को नदी से जल लाने के लिए कहते है। किन्तु जब वह जल लेकर आ रही थी तो रास्ते में किसी राजा को नदी में स्नान करते हुए देखकर वो उन पर आकर्षित हो जाती है। जिसके कारण घड़े का जल धरती पर बिखर जाता है और घड़ा भी फुट जाता है। ऐसे में वो खाली हाथ ऋषि जमदग्नि अर्थात अपने पति के पास आकर रोने लगती है।
तब ऋषि अपनी योग शक्ति से सब पता लगा लेते है। तब वह अपने पुत्रो को आदेश देते है कि वह अपनी माता को मृत्यु दंड दें। किन्तु सभी पुत्र अपनी निष्क्रियता प्रकट करते हुए अपनी माता को मृत्यु दंड देने से माना कर देते है।
तभी वहां पर परशुराम जी आते है। और वो अपने पिता के आदेश पर बिना क्षण व्यर्थ किये अपनी माता के सिर को धर से अलग कर देते है। यह देखकर ऋषि को परशुराम जी पर गर्व होता है। तब ऋषि अपने पुत्र से पूछते है तुमने अपनी माता को मृत्युदंड देने से पहले एक पल भी विचार नहीं किया। तब परशुराम जी कहते है कि मेरे लिए पिता का आदेश सर्वोपरि है। यह सुनकर ऋषि काफ़ी प्रसन्न होते है