क्या एक वकील को न्यायालय में कानून की सभी धाराएं याद रखनी पड़ती हैं?

अब जब एक कानून में ही 511 धाराएं है, और कानून लाखो की तादात में है, तो सोचिये धाराएं कितनी होगी।तो यह संभव ही नही कि सभी कानून या उसकी धाराएं याद रखी जा सके।

अब आप सोच रहे होंगे कि फिर ये वकील कानून के जानकार कैसे हो सकते है ?

अब क्योंकि एक वकील हूँ तो आपको एक राज की बात बताता हूँ। कि कैसे एक वकील सभी कानूनों को बिना पढ़े या याद किये भी समझ सकता है और आपको उचित सलाह भी दे सकता है।

अब आप एक आम इंसान के नज़रिए से सोचिये। कि एक आदर्श व्यक्ति को क्या गलत लगता है। उदाहरण के लिए उधार लेकर ना लौटाना गलत है, किसी को मारना गलत है, किसी के खिलाफ झूठी गवाही देना गलत है, धमकी देना गलत है, झूठा मुकदमा करना गलत है। — तो इस उदाहरण से ये तो आम इंसान भी जानता है कि, क्या गलत है।

बस तो अब आपमें और वकील में बस इतना सा फर्क है कि वो ये जानता है कि जो गलत है वो किस कानून से संबंधित है, जैसे अगर कोई नशीले पदार्थो को रखने का दोषी है तो आप भी समझ जाएंगे कि ये गलत काम किया इस व्यक्ति ने।

अब वकील बस इतना आपसे अधिक जानता है कि ये जो आपको गलत लगता है कौनसे कानून में गलत है। जैसे मारपीट और सामान्य अपराध के मामले, आई.पी.सी अंतर्गत गलत यानी अपराध है, और नशीले पदार्थो संबंधित अपराध NDPS ACT में अपराध है।

तो आपको समझाने का मतलब है कि कानून को याद करने की वास्तव में जरूरत ही नही है। कानून को समझने की समझ तो हमको प्रकृति ने जन्म से ही दी है। इसी कारण सभी कानून प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर बने है।

अब वकील क्यों एक आम इंसान से अलग है अगर कानून सभी समझ लेते है सामान्य बुद्धि से ?

ऐसा इसलिए क्योंकि एक वकील ने कानून की शिक्षा लेने के दौरान कानूनों को पैदा करने वाले तथा कानूनों का अंत करने वाले सभी कानूनों के भगवान यानी, भारत के संविधान को पढ़ा और समझा होता है। और एक वकील जानता है कि संविधान के खिलाफ जाकर कोई भी कानून जिंदा नही रह सकता, और ना ही पैदा हो सकता है। अब क्योंकि वकील संविधान जानते है तो वो आपकी बात सुनकर या कुछ भी लिखा पढ़कर अपने दिमाग में उस बात को संविधान की कसौटी पर परखता है, और फिर ये जान लेता है कि ये बात गलत है, बस अब वो गलत बात संबंधित कानून ढूंढता है और कोर्ट में उस गलत बात को, ढूंढे गए कानून की सहायता से गलत साबित कर देता है।

इसी पढ़ाई की बात पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी वकील ज्योति जी के लेक्चर में कही बात आपको बताना चाहूंगा उन्होंने कहा था—

“किताबों को समझे बिना ही पढ़ना ऐसे है ,जैसे गधा चन्दन के भार का बोझ उठा रहा हो और उसे पता भी ना हो ।”

अब आते है इस सवाल पे, कि कोर्ट में क्या सभी कानून या धाराएं याद रखना जरूरी है ? जी नही, कोई जरूरी नही है। क्योंकि कोर्ट में भी एक कहानी आपको, या आपके खिलाफ लिखित में पेश की जाती है जिसमे धारा भी लिखी होती है, आप तब भी उसका जवाब देने के लिए उचित समय लेकर संबंधित धारा पढ़ कर जवाब दे सकते है।

बस वकील को प्रक्रिया संबंधित कानून जो ऐसे नियम है जो ये बताते है कि कोर्ट में कोई आपराधिक या सिविल कार्यवाही कैसे संचालित होगी उनको याद रखना पड़ता है।

वो नियम वैसे ही है जैसे क्रिकेट में बनाये जाते है जो ये बताते हैं कि कब वाइट बॉल होगी और कैसे खिलाड़ी आउट होगा। ऐसे नियमो को आपराधिक मामलों में दंड प्रक्रिया संहिंता, तथा सिविल में सिविल प्रक्रिया संहिंता कहते है। इन्ही नियमो अनुसार जज साहब भी बंधे होते है और पूरा मुकदमा शुरू से अंत तक इन्ही नियमो का पालन करते हुए लड़ा जाता है।

अब ये भी सच है कि वकालत करते-करते एक वकील को काफी सारी धाराएं याद हो जाती है। मगर याद करना जरूरी नही, जरूरी है कही गई बात को कानून की कसौटी पर कसकर यह फैसला करना कि बात सही है या गलत। बात संबंधित धारा तो किताब खोलते ही मिल जाती है।

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