क्या ईश्वर ने इंसान को बुद्धि देकर कोई गलती की है ,जानिए

हम सिर्फ बुद्धि के बारे में जानते है। इससे आगे जाने की कभी कोशिश भी नहीं करते। ईश्वर यानी आपके चारो और जो शुध्द भाव बहता है उस भाव को ही हम भगवान कहते है। और उसी भगवान ने हमें ये शरीर दिया और उसी शरीर में मन बुद्धि और चेतना दी। क्योंकि ये सिर्फ मनुष्य के ही अन्दर हो सकता है। और मन हमें सिर्फ वर्तमान सुख की और ले जाता है और भविष्य के शत्रु को बढ़ावा देता है जिसके कारण हम अपने भविष्य के कर्म को भूल जाते हैं। और उसी कर्म से जुड़े शत्रु हमें तंग करते है और नुकसान पहुंचाते है।

परंतु जो बुद्धि यानी सिर्फ कर्म करना ये उन शत्रुओं का विनाश करता है। क्योंकि बुद्धि के स्तर पर पहुंचे हुए लोग अपने वर्तमान सुख को भुलकर सिर्फ कर्म में लगे रहते हैं वो अपने वर्तमान सुख की और ध्यान भी नहीं देते। ऐसा करने से वो काफ़ी सुख संपन्न और बलशाली होते है। परंतु उसके बाद अंहकार का जन्म होता है अंहकार जो सिर्फ हमें अपने बारे में दंका पीटने को कहता है। और दिखावा करता हैं सच बात तो ये है कि बुद्धि भी व्यक्ति का शत्रु है जो सिर्फ हमें काम में लगाता है जिस हम अपना सब कुछ समझते है कि काम ही सब कुछ है।

हकीकत तो ये है ईश्वर ने हमें सिर्फ एक चेतना दी है जो कि आत्मस्वरूप है वो प्रदान किया और आत्मा साक्षात परमात्मा स्वरूप है चेतना के स्तर पर पहुंचे हूए लोग अपनी आत्मा को ही सब कुछ समझते है और अपनी आत्मा के लिए ही कार्य करते है। जैसे आत्मा को जो भी अच्छा लगता हैं वो कार्य जैसे सात्विक भोजन, सबसे प्यार करना और वो कार्य करना जिसमें सब का हित हो और इसी के विपरीत बुद्धि हमें सिर्फ वो कार्य करने को कहता है जिसमें सिर्फ अपना हित हो।

हम सब एक ही आत्मा है जैसे महासागर जिसका पानी कई नदियों के रूप में तालाबों के, कूएँ के और वर्षों के रूप में यहां वहाँ बहता है और एक दिन महासागर में मिल जाता है। ठीक इसी प्रकार हमें ईश्वर की और जाना होता है और यही हर मनुष्य का कर्म परंतु हम बुद्धि से आगे जा ही नहीं पाते।

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