क्या इंसान पर भोजन का अच्छा बुरा प्रभाव पड़ता है? जानिए आप भी

आप जिस प्रकार का अन्न सेवन करोगे वैसा ही प्रभाव आपके दिमाग पर हो जाएगा.. आज भी हम भोजन को अन्नपूर्णा का प्रसाद समजते है.. शास्र भी यही कहता है कि आप का अन्न किस स्थिति में पकना चाहिए.. किस प्रकार भोजन करना चाहिए इसके ऊपर सही दिशा से मार्गदर्शन आज भी उपलब्ध है..

तो चलिए दोस्तों आज इसी विषय पर एक कहानी आपको सुनाते है.. एक पहाड़ी में एक तपस्वी अपनी मोक्ष प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे.. जब उसे प्यास लगती थी तो पहाड़ो के झरनों का पानी पिया करते थे.. और जब भूख लगती थी जंगल के ही फलाहार, कंदमूली खाकर गुजरा करते थे.. उनकि ये व्यवस्था उनका एक प्रिय शिष्य कर रहा था.. कहि साल तक ये दिनक्रम जारी था.. एक दिन उनका शिष्य फलाहार के लिए जंगल मे भटकता रहा लेकिन उसे कोई भोजन की व्यवस्था नही मिली.. कहि दूर चलते चलते किसी शहर में आ पहुँचे.. दूर से ही उन्हें एक बस्ती नजर आयी.. यहाँ कुछ भोजन की व्यवस्था होगी यह सोचकर शिष्य उस बस्ती में दाखिल हुए..

बस्ती के एक घर के द्वार पर एक नारी खड़ी थी.. शिष्य ने बड़ी विनम्रता से उस नारी से कुछ खाने के लिए मांगा.. नारी रसोई में चली गयी और कुछ खाने की चीजें शिष्य को सौप दी.. संयोग से वो घर एक वेश्या का था.. शिष्य वो चीज लेकर पुनः अपने गुंफा में आ गए.. इससे पहले शिष्य को इतनी देर नही लगी थी तो.. तपस्वी ने हैरियत से अपने शिष्य को देर से आने का कारण पूंछा.. जो भी घटना हुई.. शिष्य ने सारी तपस्वी को कथित की.. तपस्वी ने भोजन किया.. ऐसा भोजन वे पहली बार ही खा रहे थे.. खाने के बाद उसका मन अजीब सी हरकते करने लगा.. और अभी हमे उस नारी ने दिया हुआ भोजन और चाइये करके जिद कर बैठे.. तपस्वी का ये बदलाव देखकर शिष्य अचंभित हुए.. लेकिन कुछ न बोले..

कुछ दूरी काटने के बाद तपस्वी और शिष्य उस नारी के घर पहुंचे.. नारी का सौंदर्य देखकर तपस्वी का मन भी चंचल बन गया.. और वे उस नारी के सन्मुख आकृष्ट हो गए.. शिष्य ने अन्तर्ज्ञान से सब जान लिया.. और अपने गुरु को एक गिलास नमक डालकर पाणी पीने के लिए दे दिया.. पाणी पीते ही गुरु को जोर की उल्टी आ गयी और खाया हुआ सारा अन्न बाहर निकल आया.. अन्न बाहर निकलतेही तपस्वी को अपनी गलती का एहसास हो गया.. और उनका मन फिर से पवित्र बन गया.. तपस्वी अपने शिष्य को लेकर फिर अपनी गुंफा में साधना करने चले आये..

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