कोई प्रेमिका नहीं थी, कोई पत्नी नहीं और न बच्चे, फिर शोले में गब्बर सिंह किसके लिये लूटपाट करता था?
गब्बर सिंह की व्यथा आप क्या जाने …जैसा कि हमने फ़िल्म में देखा था…गब्बर सिंह जी ने एक स्टार्ट अप शुरू किया था…आफिस सेट अप की कमी थी…कोई फाइनेन्सर था नहीं … स्विस बैंक में कोई खाता भी नही था…उस वक्त मान सिंह, ज्वाला सिंह और भी कई स्टेब्लिशेड डाकू थे …किसी नए डाकू को टिकने नही देते थे…तब भी नेपोटिस्म का बोलबाला था…डाकू के बच्चे बिना किसी स्ट्रुगलर के डाकू बन जाते थे…
गब्बर सिंह को कोई नौकरी शौकरी मिली नही…कुछ समझ नहीं आया तो कुछ दोस्तों कालिया, सांभा के साथ, छोटा सा स्टार्ट अप शुरू किया था अपने चाचा के कब्जे वाले पहाड़ों से…कुछ भी सेट नहीं था …यानी गब्बर एक एक्सीडेंटल डकैत था…समझते है न एक्सीडेंटल…जैसे हमारे दो तीन प्रधानमंत्री थे वैसे ही….वैसे वैसे ही…कोई क्वालीफयड डाकू तो थे नहीं …होते तो क्या डाकू बनते…मान्यवर बनते… सांभा और गब्बर के बालों को देखकर आपको क्या लगता …क्या बेचारों के बैंक में पैसा था….अगर होता तो लंदन से बाल कटवा कर न आते….
गब्बर बेचारे के दाँत पैसे की कमी की भेंट चढ़ गए….बसंती को नचा नचा कर मनोरंजन करता था….पैसे होते तो क्या थाईलैंड नही जाता…क्राउड फंडिंग का कांसेप्ट नही था…लूटपाट नही करता तो क्या करता…कोई अंत्योदय, सौभाग्य, कोई सरकारी स्कीम का कोई फायदा नहीं…खाना तो लकड़ी पर बनाते थे…रात को मशाल जलाकर चव्वनी अठन्नी गिनते थे…अड्डे पर लाइट नही…गैस नही…जनधन एकाउंट नही…डीजल पेट्रोल के पैसे नहीं…घोड़े पर चढ़ चढ़ कर दौड़ते रहते….कैलेंडर नहीं….त्योहारों के लिए सांभा की सूचना पर निर्भर रहता….आदमी और गोलियां गिनता रहता…एक एक गोली किफायत से खर्च करता…पैसे होते तो तोप* न खरीदते……
खुद का विज्ञापन खुद ही करता….कि 50 50 कोस…..नही तो नेशनल हेराल्ड नही खरीदता…फिर खुद के ही विज्ञापन छपवाता….ज़ाकिर नाइक, बरखा दत्त, रवीश उसके पक्ष में डिबेट कर रहे होते…किसी पार्टी का नेता बनकर उन पुलिस वालों को आगे पीछे घुमाता जो उसे दौड़ाते रहते….भाई….पैसे की माया है…न हो तो खैनी खा खा के जनगणना करता रहता कि कितने आदमी थे….भैया ….बीबी बच्चे प्रेमिका न हो तो भी बड़े खर्चे होते है….लूटपाट तो एक स्थापित कला है…सदियों से चल रही है…गब्बर पकड़ा जाता है….बस …